| Specifications |
| Publisher: Harper Collins Publishers | |
| Author Amish Tripathi, Bhavna Roy | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 320 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8x5 inch | |
| Weight 244 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789362136459 | |
| HBC339 |
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तीन घटनाओं ने इस किताब के विचार को आकार दिया था। ती पहली घटना मेरे (अमीश के) साथ हुई थी। मैं एक लोकप्रिय लिटरेचर फेस्टिवल के मंच पर था, और श्रोताओं में ज्यादातर युवा थे- मेरी किताबों के मुख्य पाठक। एक कॉलेज- छात्र खड़ा हुआ और उसने कहा कि उसे मेरी किताबें बहुत पसंद हैं और कि उसे अपने हिंदू होने पर गर्व है, लेकिन वो 'स्पष्ट रूप से मूर्ति-पूजक' नहीं है। उसने यह आख़री टुकड़ा लगभग अरुचि से कहा था। वो अपने सवाल पर आता, इससे पहले ही मैंने उसे रोका और पूछा कि मूर्ति-पूजक न होने में 'स्पष्ट' क्या है। उसने कहा कि उसे पता है कि मूर्तियां असल में भगवान नहीं होतीं और उनकी पूजा करना ग़लत है, और इसलिए वो यह नहीं करता। और फिर उसने दोबारा कहा, 'लेकिन मुझे हिंदू होने पर गर्व है।' नौजवान की विरोधाभासी टिप्पणियों पर मैं 'स्पष्ट रूप से' हतप्रभ था, और उससे और जिरह करना चाहता था। मगर मैंने सोचा कि सार्वजनिक मंच पर और उसके मित्रों के सामने उसे चुनौती देना सही नहीं होगा, और मैंने उसे अपना सवाल पूछने दिया। मगर यह घटना मेरे मन में अटकी रह गई।
यह किताब एक मायने में उस नौजवान को जवाब है, जिसे हमारी संस्कृति में तो दिलचस्पी है, लेकिन शायद वो इसे पूरी तरह समझता नहीं है। वो मनोविज्ञान की भाषा में 'बैटर्ड वाइफ़ सिंड्रोम' कहे जाने वाले विकार के एक रूप से पीड़ित है, जिसमें अपने पति के हाथों हिंसा झेल रही पत्नी अक्सर ख़ुद को ही हिंसा का कारण मानती है। एक समूह के रूप में मूर्ति-पूजकों ने पिछले दो हज़ार सालों में भयानक हिंसा और मानव इतिहास के सबसे बुरे नरसंहारों को झेला है; भारत जैसे कुछ बचे-खुचे स्थानों को छोड़कर उन्हें दुनिया में लगभग हर जगह से मिटा दिया गया है। फिर भी, दबी-कुचली पत्नियों की तरह, आज अनेक मूर्ति-पूजक अपने पूर्वजों पर अत्याचार करने वालों की जगह ख़ुद को दोषी मानते हैं।
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