में पिछले चालीस वर्ष से हस्त पठन की प्रेक्टिस कर रहा हूं और पिछले कुछ समय से 'इंस्टीच्यूट ऑफ पामिस्ट्री' के माध्यम से शिक्षार्थियों के अलग ग्रुप बनाकर उन्हें हस्तरेखा विद्या का शिक्षण भी देता रहा हूं।
मेरे ग्रुपों में समाज के अनेक वर्गों के शिक्षार्थी रहे हैं, उनमें उद्योगपति, गृहिणियां, अध्यापक तथा सरकारी विभागों
में काम करने वाले अधिकारी भी हैं। इन शिक्षार्थियों में से कुछेक को पहले से हस्तरेखा विद्या की कोई जानकारी नहीं थी. और कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने पुस्तकों द्वारा आरंभिक ज्ञान तो प्राप्त किया हुआ था, किंतु उन पुस्तकों से वे इस विद्या के रहस्य पूरी तरह समझ न पाए थे। वे सब मेरी शिक्षण विधि से संतुष्ट हुए।
यह पुस्तक मेरे अध्ययन-अध्यापन और अनुभव का सार तो है ही. इसके साथ इस विद्या का शिक्षण देते समय शिक्षार्थियों के साथ मेरे जो प्रश्नोत्तर हुए, उनका सार भी इसमें शामिल है। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक द्वारा आप इस विद्या को पूरी तरह समझ सकेंगे और इसका लाभ उठा सकेंगे।
हस्तरेखा विद्या सीखने का अपका उद्देश्य हॉबी या मनोरंजन है या आप इसे रोजगार का साधन बनाना चाहते हैं.
दोनों दशाओं में यदि आप एक शिक्षार्थी की भांति इस पुस्तक को पढ़ेंगे और इसमें दिए गए निर्देशों का पालन करेंगे तो आप इस विद्या में निपुण होते जाएंगे और हस्तरेखाओं के विषय में आपके मन में उठने वाले प्रश्नों के उत्तर आपको स्वतः हो मिलते चले जाएंगे।
यह बात कहने के साथ ही मैं यह बात भी स्पष्ट करना चाहता हूं कि कोई भी विद्या ऐसी नहीं है, जिससे जुड़े सभी प्रश्नों के उत्तर मिल चुके हों, क्योंकि किसी भी विद्या का अंत नहीं है. इसलिए खोज की भी कोई सीमा नहीं है। वह दिन संभवतः कभी न आएगा, जिस दिन हम सभी प्रश्नों के उत्तर पा लेंगे।
सामान्य ज्ञान और विज्ञान का अंतर
हम जिस विषय का शिक्षण आपको दे रहे हैं, उसे अब तक विज्ञान का दर्जा नहीं मिला है। कुछ लोग हस्तरेखा विद्या को चमत्कारी विद्या मानते हैं और कुछ ढकोसला कहकर इसका तिरस्कार करते हैं। शायद इसीलिए पामिस्ट्री की पढ़ाई भारत की किसी यूनिवर्सिटी में जारी नहीं है, किंतु हम और हमसे पहले के बहुत से पामिस्ट इस विद्या की सत्यता को मानते रहे हैं और इसका वैज्ञानिक आधार खोजते रहे हैं। हमें इस विज्ञान के पूरे सूत्र भले ही न मिले हों, किंतु हमारे सामने हस्त रेखाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता रहा है।
इस बात को हम एक उदाहरण से स्पष्ट करते हैं।
यह बात हजारों साल से सब जानते हैं कि लकड़ी पानी में तैरती है और लोहा डूब जाता है। इसी ज्ञान के आधार पर लकड़ी की नावें बनती रही हैं, और लोहे के लंगर बनते रहे हैं, किंतु यह बात बहुत बाद में विज्ञान ने खोजी कि लकड़ी क्यों तैरती है और लोहा क्यों डूबता है। आज विज्ञान का सामान्य-सा छात्र बता सकता है कि लकड़ी का बड़ा लट्ठा क्यों पानी में तैर जाता है और लोहे की छोटी सी आलपिन क्यों पानी में डूब जाती है, लेकिन आज से दो हजार साल पहले का वैज्ञानिक भी इस डूबने और तैरने के रहस्य अनजान था।
यह उदाहरण देकर हम यह कहना चाहते हैं कि पामिस्ट्री यदि आज सभी प्रश्नों के उत्तर न दे पाए तो हम यह आशा करते हैं कि आने वाले समय में हम इसका आधार समझ लेगें। हर विज्ञान के साथ ऐसा होता रहा है, हस्तरेखा विद्या के साथ भी ऐसा हो तो कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। इस पुस्तक के अंत में मैंने पामिस्ट्री के फिज़ियालोजिकल पक्ष पर अपनी परिकल्पना (Hypothesis) भी दी है।
इस पुस्तक के अध्ययन की विधि
इस पुस्तक को उपन्यास और कहानी की तरह लगातार मत पढ़ें, बल्कि एक दिन केवल एक प्रकरण पढ़ें। जिस दिन जो प्रकरण पढ़ें, उसकी मोटी-मोटी बातों को मन-ही-मन दुहराते रहें। तीन-चार प्रकरण पढ़ने के उपरांत अपने हाथ के लक्षण देखें और अपने अनुभव का फल एक नोटबुक में लिख लें। फिर आगे के प्रकरण पढ़ने के बाद अपना हाथ देखते हुए इस विद्या की जांच-परख करते रहें। लगभग दस प्रकरण पढ़ने के बाद अपने परिवार के जनों के हाथ देखें और अपने ज्ञान की परख करें, किंतु पूरी पुस्तक पढ़ने से पहले किसी की निश्चित् भविष्यवाणी न करें, क्योंकि अधूरी विद्या का फल वही होता है जो 'नीम-हकीम' के इलाज से होता है। इससे विद्या बदनाम होती है। उतावली में यदि आप शॉर्ट-कट का मार्ग अपनाएंगे तो आप इस विद्या को पूरी गहराई से नहीं समझ सकेंगे।
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