हाड़ौती अंचल महिला साहित्य लेखक का दस्तावेजीकरण समीक्षा कर्म सबसे अलग और साहित्य सृजन में दुष्कर कर्म है। यह विद्या अनुभव, पठन, अध्ययन, विचार, मंथन आदि के समन्वय से सामने आती है। कृक्ति मूल्यांकन अलग होता है और समग्र मूल्यांकन पृथक् से। यदि आपको साहित्यिक परिवेश, साहित्य समाज और उस व्यक्ति विशेष, जिसका आप साहित्यिक मूल्यांकन कर रहे हैं, जानकारी हैं, तो यह मानें कि फिर आपका मूल्यांकन अलग ही जानकारी हैं तो यह मान कर कि फिर आपका मूल्यांकन अलग ही दिखाई देता है। इसके लिए अध्येता होना आवश्यक है। पिछले वर्षों में यह खूबी मुझे डॉ. प्रभात कुमार सिंघल में दिखाई दी है।
यह कृक्ति स्वयं बताती है कि किसी व्यक्ति विशेष साहित्यकार की साहित्यिक यात्रा का मूल्यांकन कैसे किया जाता है? सबसे बड़ी खूबी डॉ. प्रभात कुनार सिंघल का समीक्षक किसी भी मामले में व्यक्तिगत भी होता वो निस्पृह निर्विवाद भाव से साहित्यक मूल्यांकन करते हैं। देशभर में ऐसी विशेषता गिने-चुने समीक्षकों में ही होगी। इस संदर्भमें राजस्थानी भाषा साहित्य की समीक्षा में डॉ. नीरज दइया का नाम ले सकते हैं। वो राजस्थानी समीक्षा के नामवर सिंह हैं। डॉ. प्रभात कुमार सिंघल भी कम तो नहीं।
इस कृति के पूर्व उन्होंने विदुषी लेखिकाओं का साहित्य मूल्यांकन परिचय आलेख फेसबुक पर डाले थे। मैं हर पोस्ट पर हतप्रभ था इस अंचल का नामवर समीक्षक अब तक कहाँ बैठा था। इसके उदाहरण महनीय लेखिकाओं डॉ. क्षमा चतुर्वेदी, डॉ. वीणा अग्रवाल की पोस्ट भी थी, तो साहित्य से अब तक जुड़ी रहीं सुदुर अंचल बारां की डॉ. शकुंतला साहू कुंतल को साहित्यिक अनुदान प्रस्तुति अनूठी थी, तो डॉ. हिमानी भाटिया की पोस्ट मेरे लिए ज्ञानवर्द्धक और अनूठी थी।
कृतिकार कृक्ति की सर्जना तो कर देता है, किन्तु उसे स्वयं ही ज्ञात नहीं होता है। मुझ डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की समीक्षाएँ गवेषणात्मक और संश्लिष्टता तो लिए दिखाई देती थी।
लेखक की 'जियो तो ऐसे जियो' कृति देखकर मैं कह सकता था लेकिन वो पूरी कृक्ति मैंने और नही पढ़ी, हाँ पर उसकी जानकारी अनूठी है। यहाँ इस कृति को लेकर कहा जा सकता हैं कि डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने पाश्चात्य आलोचकों की आलोचना प्रविधि में से मनोवैज्ञानिक, आलोचना, संरचनावादी आलोचना, सौंदर्य शास्त्रीय आलोचना को काम में लिया है तो भारतीय आलोचना की आलोचना प्रविधि में से आलोचक का दायित्व बोध, आलोचना के सामाजिक उपकरण, साहित्य समीक्षा, अध्ययन और खोज जैसे उपकरण काम में लिए है।
यह सच हैं कि बिना अध्येता हुए आलोचना को नहीं लिखा जा सकता। इस कृति से ऐसा कहीं भी नहीं लगता कि समालोचक लेखक ने लेखिकाओं के बारे में विस्तृत जानकारी ली हो। उसका कारण हैं उन्होंने जो प्रपत्र लेखिकाओं को दिया था उसमें शायद सब कुछ समाहित होने का दृष्टिकोण उनके सामने था। यह कोई शोध कर्म नहीं जो प्रस्तुत कर सामने रखा जाए, इसके बारे में विद्धान लेखक ने मुझे पहले ही अवगत कर दिया था। मैंने लगभग हाड़ौती अंचल की सभी स्थापित लेखिकाओं को गंभीरता से पढ़ा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ लेखक ने अपने संक्षिप्त आलेखों में अधिक से अधिक जानकारी देने की कोशिश की है।
इस कृति के बारे में एक बार और कहीं जा सकती है कृतिकार ने हाड़ौती अंचल की गद्य और पद्य साहित्य की विकास पंरपरा को पढ़ा और समझा भी है। सच तो यह है उन्होंने संवाद के माध्यम से अधिक से अधिक जानकारी संकलित करने की कोशिश की है जो इन आलेखों में स्पष्ट दिखाई देती है।
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