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वाल्मिकी और भवभूति के रामायण में सीता उद्भव- Origin of Sita in the Ramayana of Valmiki and Bhavabhuti

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Specifications
Publisher: Satyam Publishing House, New Delhi
Author Sunil Kumar Jha
Language: Hindi
Pages: 154
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 310 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789359096711
HBU706
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Book Description

भूमिका

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। विषम से विषम परिस्थिति में भी एक स्वस्थ मनुष्य समाज से परे एकाकी जीवन नहीं जी सकता। महान राजनीतिज्ञ अरस्तु ने कहा है-अगर कोई समाज से अलग रहता है, तो वह या तो देवता है या दानव। वह जिस समय एवं समाज में पलता और बढ़ता है, उसका पूरा असर उसके खान-पान, व्यवहार, जीवनशैली, वेश-भूषा आदि पर पड़ता है। उस समय विशेष का साहित्य की उसी समाज का वर्णन करता है। इसलिए तो साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। सभ्यता के आदिकाल से ही मानव ने सुंदर समाज की परिकल्पना की है। वह सतत् इसके लिए प्रयत्नशील भी रहा है। लेखकों की रचनाएं भी उन्हीं घटनाओं और दृश्यों को अपने में समाहित करते हैं जिनका संबंध प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से समाज से रहा हो। कतिपय कारणों से कुछ कवियों के बारे में गलत धारणा है। उन्हें राजा-महाराजाओं के दरबार की हवा खाने वाला चापलूस माना गया है, लेकिन संस्कृत भाषा के कवि संकीर्ण विचार वाले व्यक्ति नहीं थे, जो अपने परिचित विचारों की कोठरी में अपना दिन बिताया करते थे। वे समाज के विशुद्ध वातावरण में विचरण करते थे। सुख-दुख की भावना उनके हृदय को स्पर्श करती थी। वे अगर एक तरफ दीन-दुखियों की दीनता पर चार आँसू बहाते थे तो दूसरी तरफ सुखी जीवों के सुख पर रीझते भी थे। उनका हृदय सदैव दूसरों के प्रति सहानुभूति की भावना से नितान्त स्निग्ध होता था। पाश्चात्य देशों के लोगों से अगर हम अपनी तुलना करें, तो इतना अवश्य कहा जा सकता है कि हम भारतीय उनसे अधिक सहृदय और परोपकारी हैं। हम भारतीयों ने रोटी देना सीखा है, रोटी छिनना नहीं। हम आँसू पोछने वाले हैं, आँसू बहाने वाले नहीं। हम अत्याचार नहीं करते, अत्याचार सहते हैं। यह भारतीय के सुंदर सामाजिक व्यवस्था का ही परिणाम है कि हम भारतीयों ने हूण, यूनानी, फिरंगी, डच, आदि की तरह किसी अन्य देशों में जाकर खून नहीं बहाया। निश्चय ही मेरा संबंध भी इसी सुंदर भारतीय समाज से है। बाल्यावस्था से ही मेरे मन में सुंदर भारतीय समाज की परिकल्पना है। प्रारंभिक पुस्तकों से, अपने माता-पिता से, समाज के श्रद्धेय वृद्धजनों से मुझे अपनी संस्कृति का ज्ञान समय-समय पर मिलता रहा है। रामायण और महाभारत की अधिकाधिक कथायें मैंने अपनी माँ से सुनी। भगवान राम, कृष्ण, दशरथ, कौशल्या, कैकेयी, सीता, माता कुन्ती, पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, कर्ण, कृपाचार्य आदि न जाने कितने चरित्रों ने मेरे मानस पटल पर स्थायी रूप से जगह बना लिया। परन्तु नारीजन्य गुणों के कारण या दया भाव के कारण इन दो काव्यों के नारी चरित्रों में सीता और द्रौपदी के चरित्र ने मेरे मन को उद्धिग्न कर दिया। एक तरफ जहाँ अपनी मर्यादा के आगे सिर न झुकाने वाले राम जो समय-समय पर सीता से अग्नि परीक्षा लेते रहे और सीता अनन्य पति प्रेम के कारण मूक होकर उनके आदेशों का पालन करती रहीं। दूसरी तरफ बड़े-बड़े महारथियों की भार्या द्रौपदी दुर्योधन और दुःशासन के अत्याचार को अपने पतियों के समक्ष झेलती रहीं। आखिर सीता और द्रौपदी की गलतियाँ क्या थी? वे क्यों शोषित होती रही? जिस प्रकार जठरानल से उद्धिग्न मानव एक-एक अन्न के दाना को पाने के लिए लालायित रहता है, उसी प्रकार मानसिक क्षुधातृप्ति के लिए मानव जीवन पर्यन्त प्रयत्नशील रहता है। मेरे वाल्यमन में भी ये बात घर कर गई कि आखिर सीता और द्रौपदी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों? इसी कौतूहल की अगली कड़ी रामानन्द सागर का प्रसिद्ध धारावाहिक 'रामायणः बनी। मैं इस साप्ताहिक रविवासरीय धारावाहिक का बड़े ही व्यग्रता से प्रतीक्षा करती थी। मेरा मन यहाँ भी सतत् सीता के जीवन चरित्र में आए मुसीबतों को पढ़-पढ़कर या देख-देखकर दुखित होता रहता था। इन्हीं सब कारणों से मैंने संस्कृत विषय को ही अपनी शिक्षा का अंग बनाया। संस्कृत और संस्कृति को जानने की अदम्य लालसा ने ही मुझे संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया। सीता के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए ही मैंने वाल्मीकि रामायण और भवभूति रचित 'महावीर चरित और उत्तररामचरित' काव्यों का गहन अध्ययन किया। इन काव्यों में सीता-चरित्र का मंथन करते-करते स्वयं में निश्चय किया कि मैं भी सीता चरित्र के बारे में कुछ शोध करूँ। इन्हीं सब कारणों से मेरा शोघ विषय "वाल्मीकि एवं भवभूति की प्रधान नायिका का समीक्षात्मक अध्ययन" आपके सामने प्रस्तुत है।

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