| Specifications |
| Publisher: Shri All India Swetamber Sthanakwasi Jain Conference, Delhi | |
| Author Acharya Shivmuni | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 96 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 7.00x5.00 inch | |
| Weight 100 gm | |
| Edition: 2022 | |
| HBM730 |
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शाश्वत सुख प्राप्त करने के लिए जिनवाणी का स्वाध्याय, चिन्तन, मनन और आराधन आवश्यक है। जिनवाणी का शाश्वत और विशाल ज्ञान आगम साहित्य में उपलब्ध है। लेकिन आगमों का अध्ययन करना और उसके गूढ़ रहस्यों को आत्मस्थ करना, सामान्य पाठकों के लिए सरल नहीं है। जिस प्रकार किसी भी भाषा को जानने के लिए उसकी वर्णमाला, (अ, आ, इ अथवा A, B, C आदि) का ज्ञान होना अनिवार्य है, उसी प्रकार आगम साहित्य के अध्ययन के लिए स्तोक (थोकड़ा) साहित्य का ज्ञान आवश्यक है।
'स्तोक-विधा' जैनाचार्यों का एक अनुपम अनुसंधान है। तत्वदर्शी विद्वान आचार्यों ने प्रचुर संख्या में स्तोकों की रचना की। वर्तमान में सैकड़ों स्तोक जैन परम्परा में प्रचलित हैं। उनमें 25 बोल का स्तोक प्रमुख और प्रधान है। आगमों में वर्णित सभी प्रमुख विषयों का इस स्तोक में बीज रूप में संकलन किया गया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि गागर में सागर की भाति विशाल श्रुतराशि इस स्तोक में संचित / संकलित है।
इसमें संदेह नहीं है कि इस स्तोक का स्वाध्याय करने से, इस पर श्रद्धान करने से हमारे जीवन में जिनवाणी का शुद्ध स्वरूप प्रकट होगा।
श्रुत संवर्धन समिति के तत्वावधान में प्रकाशित यह कृति स्वाध्यायियों को पसन्द आएगी, समाज में श्रुत का प्रचार-प्रसार होगा, ऐसा मेरा सुदृढ़ विश्वास है।
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