लेखक परिचय
गोष्ठोप्रिया देवी ने, आध्यात्मिक पथ पर कब चलना शुरू किया, वो कदाचित उन्हें भी पाता नहीं। जबसे उनमे कुछ जानने की क्ष्यमता आयी, उनकी इच्छाएं नतो पड़ने में थी नहीं खेलने में। वह सुनतिथि तो केवल मातृ वन्दनाएं, देखतिथि तो केवल आध्यात्मिक सीरियल और ढूंढतिथि तो कुछ अव्यक्त आनंद। फिर जब उन्हें अपना पति 'गोष्ठचंद्र' अर्थात कृष्ण मिल गएँ, तब मात्र २१ वर्ष की आयु में ही उनमे दिव्य ज्ञान का प्रकाश आने लगा, अश्रु धारा बेहेने लगी और वे दीवानी हो गयी। २५ वर्ष के आयु से ही उन्होंने ज्ञान बांटना शुरू किया। वे कोई प्रवाचक अथवा कथा वाचक नहीं। वे केवल शास्त्रों का अलौकिक समाधान करती है। उनके Youtube Channel: Tannyo Krishno Prachodayat में वे सारे समाधानों के साथ साथ, अनेको दिव्य घटनाएं भी देखने को मिलेगा। और सबसे बड़ा समाधान तो यह ग्रन्थ ही है। शास्त्र के किसीभी कथा के, किसीभी श्लोक के, किसी भी अक्षर के आकृति का गूढ़ार्थ जैसे उनके होठों में बैठा हो। इसका प्रमाण भी इस ग्रन्थ में मिलजायेगा। वे निर्लिप्त, अकेले, चार दीवार के भीतर, अपने कृष्ण के संगही जीती हैं। हम कुछ भक्तों के निरंतर आग्रह से ही, यह ग्रन्थ के लिए, वे लोगो के सामने आने के लिए तैयार हुई।
भूमिका
हे साधक/साधिका, आपको कोटि कोटि प्रणाम। इस पुरे ग्रन्थ में मैं आपको साधक कहकर के ही सम्बोधित करूंगी। पता है क्यों? यदि आप साधक न होते, तो इस ग्रन्थ को लेने की इच्छा ही आप में नहीं जागती। कारण, 'राधा तत्त्व' को जानने अथवा समझने की इच्छा साधक भिन्य अन्य किसीके भीतर आना संभव ही नहीं। कारण राधिका स्वयं श्री कृष्ण के आराधिका हैं; श्री कृष्ण जहा बोल रहे हैं -
मत्तः परतरंग नान्यत किंचिदस्ती धनञ्जय (गीता, ७। ७) अर्थात - 'हे धनञ्जय, मुझसे श्रेष्ट और कुछ भी तत्त्व नहीं।' उस कृष्ण के आराधिका हैं, श्री राधिका। जहा श्री कृष्ण बोल ते हैं -
"देहि में पदपल्लबमुदारम।" "हे राधा, दो अपना चरण मुझे।"
वह आराधिका हैं श्री राधिका। एवं उस राधिका का मानो संपत्ति हैं श्री कृष्ण। इस लिए जो कृष्ण को जानना चाहता हो, वो तो भक्त है ही, अब जो राधा को जानना चाहता हो, वो तो साधक होंगे ही। इस लिए दोबारा आपको कोटि कोटि प्रणाम।
कदाचित आप सोचेंगे राधिका को न जानने की अथवा न समझने की क्या विशेषता है? राधिका तो वह हैं जो कृष्ण प्रेम में व्याकुल हैं। सुध बिसराई हैं।
प्राक्कथन
अथर्व वेद के शाखा आयुर्वेद में एक अति गुज्झ और महत्वपूर्ण सूत्र है "यत पिंडे तत ब्रह्मांडे"। अर्थात जो कुछ भी इस देह रूपी पिंड में है वह इस वृहद अंड-रूपी ब्रह्मांड में भी है। इसके दो तात्पर्य है। प्रथम यदि एक को संपूर्ण रूप से जान लिया जाए तो दूसरे को भी संपूर्ण रूप से जानना संभव है। दूसरा जो कुछ भी ब्रह्मांड में घटित हो रहा है वह सर्वदा वृत्ति रूप में इस देह-रूपी पिंड में भी घटित हो रहा है।
इसलिए जीव, साधना के बल पर अलग-अलग स्तर में पहुंच सकते हैं; सुग्रीव होकर उसमें राम अवतार आ सकता है, अर्जुन होकर कृष्णावतार आ सकता है, यशोदा होकर गोपाल अवतार आ सकता है, परंतु राधा होकर श्याम अवतार घटित नहीं हो सकता; कारण साधना द्वारा जीव ईश्वर को पा सकता है।