विकिरण एक ऐसा क्षेत्र है जो पिछले कुछ दशकों से वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों तथा जनता का ध्यान आकर्षित कर रहा है। एक ओर तो यह वरदान है और यदि इसका विवेक से प्रयोग नहीं किया जाए तो दूसरी ओर यह अभिशाप है। इस विषय पर विशेषज्ञों के लिए तो यथेष्ट वैज्ञानिक साहित्य उपलब्ध है, परंतु सामान्य प्रबुद्धवर्ग को इस क्षेत्र में प्रामाणिक, लोकप्रिय साहित्य उपलब्ध न होने के कारण इस विषय की जानकारी नहीं है। अतः डा. जैन ने ठीक ही लोकप्रिय शैली में सरल भाषा का प्रयोग करते हुए, चित्रों तथा आरेखों के माध्यम से इस पुस्तक को लिखने का साहस किया है।
हम सभी प्राकृतिक और मानव-निर्मित विकिरण से संकटग्रस्त हैं। यद्यपि, ऐक्स-किरण और रेडियोसक्रियता का आविष्कार उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में हुआ था, परंतु नाभिकीय विखंडन के बाद ही, बीसवीं शताब्दी में नाभिकीय आयुधों का निर्माण और प्रसार हुआ। इस परिघटना का प्रयोग ऊर्जा संकट को हल करने के लिए ऊर्जा-संग्रहण के लिए भी किया गया। विभिन्न अन्य क्षेत्रों जैसे औषधि तथा कृषि आदि में भी विकिरण का पर्याप्त प्रयोग हुआ है। कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं जैसे रेडियोसक्रिय अपशिष्टों का प्रबंधन जो विकट समस्या हो रही है। इस पुस्तक में लेखक ने औसत प्रबुद्ध वर्ग के पाठक की विज्ञान संबंधी जानकारी को ध्यान में रखते हुए, विकिरण के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों, विकिरण के परिणामों, विकिरण-मापन में प्रयुक्त मात्रकों, प्राकृतिक और मानव-निर्मित विकिरण की मात्राओं, विकिरण की विषय-सूची, ऊर्जा-स्रोत के रूप में विखंडन का प्रयोग करने में विकिरण समस्याओं, विकिरण की निरापद मात्रा, विकिरण के प्रयोग से हम किस प्रकार लाभान्वित हो सकते हैं तथा अन्य संबद्ध विषयों पर चर्चा की है।
मैं आशा करती हूँ कि सर्वाधिक चर्चित विषय पर लिखित इस रोचक पुस्तक से पाठक लाभान्वित होंगे।
विशिष्ट जाति के रूप में उद्भव से ही हम विकिरण से प्रभावित हैं। वास्तव में विकिरण की पृष्ठभूमि के साथ ही इस ग्रह का उद्भव हुआ। हालाँकि, विकिरण के प्रभाव की चर्चा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों के बाद ही शुरू हुई। अब मानव निर्मित विकिरण स्रोतों के बारे में विभिन्न मंचों पर चिंता व्यक्त की जा रही है। यहाँ तक कि नाभिकीय रिएक्टरों में हुई छुटपुट दुर्घटनाओं के कारण नाभिकीय ऊर्जा का लाभकारी उपयोग भी आलोचना का विषय बन गए हैं। तथापि, सारे विश्व में विकिरण का विभिन्न प्रकार से व्यावहारिक प्रयोग किया गया है। लोकप्रिय स्तर पर जानकारी के अभाव में, मानव-निर्मित विकिरण की पृष्ठभूमि की आम समझ सीमित है। इसके अतिरिक्त विकिरणों की प्रकृति के बारे में गलत धारणाओं और विभिन्न अनुप्रयोगों के अनुसार, विकिरण के संदर्भ में अलग-अलग मात्रकों के प्रयोग के कारण स्थिति भ्रांतिपूर्ण हो गई है। अतः विकिरण की प्रकृति और इनके हमारे ऊपर प्रभावों के बारे में सरल और बोधगम्य विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। ऐसी प्रस्तुति से विभिन्न अनुप्रयोगों में प्रयुक्त, विकिरण के मात्रकों में संबंधों को समझना आसान होगा। भौतिक तथा जैविक विचारों को ध्यान में रखते हुए मैंने विषय का संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। समर्थक आँकड़ों और आरेखों का प्रयोग कर, मूल संकल्पनाओं से प्रारंभ कर विभिन्न पहलुओं की व्याख्या की गई है। अंत में, चुने हुए शब्दों की परिभाषा भी दी गई है ताकि पाठक को सामग्री को समझने में सुगमता रहे।
मुझे विश्वास है कि पाठक इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे और मानव जाति पर विकिरण के प्रभावों के बारे में बौद्धिक दृष्टिकोण अपनाएँगे।
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