प्रस्तुत चित्रावली और व्याख्या-माला में समाज सेवा और समाज सेवक के विषय में कुछेक महत्त्वपूर्ण बातों को दर्शाया गया है। इसमें आज के मानव की मनोस्थिति, घर-परिवार और समाज की दशा तथा देश-विदेश की हालत का भी चित्रण किया गया है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आज के सन्दर्भ में क्या समाज सेवा होनी चाहिए। साथ-साथ यह भी बताया गया है कि समाज के गठन का हेतु क्या है और एक श्रेष्ठ समाज की रूपरेखा क्या हो । आज एक स्वच्छ, स्वस्थ और सुखद समाज का नक्शा सामने न होने के कारण समाज-सेवक उस दिशा की ओर आगे बढ़ने का यत्न नहीं कर सकते बल्कि वे आज की कुछ समस्याओं को लेकर उन्हें ही सुलझाने में लगे हुए हैं। पत्ते पत्ते को पानी देने से वृक्ष कब तक हरा भरा रहेगा ? रोग के चिन्हों को हटाने का पुरुषार्थ करने से रोग कैसे समाप्त हो जाएगा ? रोग का निवारण तो उसके मूल कारण को निर्मूल करने से होगा। परन्तु खेद है कि आज रोग के मूल कारण की ओर कम ध्यान है और उस का मूलोच्छेदन करने की सेवा कम है।
प्रस्तुत चित्र-संग्रह में यथा-स्थान यह भी बताया गया है कि समाज की प्रायः सभी समस्याओं की उत्पत्ति नैतिक मूल्यों के ह्रास के परिणामस्वरूप हुई है। आज जो मानसिक तनाव है, उस के कारण जो कई रोग हैं, लड़ाई-झगड़े और कलह-क्लेश हैं. या जो हिंसा की वारदातें हैं, वे मन को आनन्द एवं शान्ति के स्रोत परमात्मा से जोड़ने ही से निवारण हो सकते हैं। ऐसा योगाभ्यास ज़रूरी है। अतः समाज सेवक को इन अमोध उपायों का प्रयोग करना चाहिए। इस संदर्भ में कुछेक धर्म-स्थापकों या महान व्यक्तियों का भी उल्लेख किया गया है जिन्होंने नैतिक स्तर पर समाज सेवा की। आशा है कि पाठकवृन्द इस चित्रावली से सेवा की एक नई दिशा में अग्रसर होंगे और इस से स्वयं भी लाभान्वित होंगे तथा इसकी प्रतियों की भेंट अन्यान्य को भी देंगे ।
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