शिक्षा के साथ-साथ व्यक्ति में उच्च संस्कारों का होना आवश्यक है। संस्कारविहीन शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है। आज हमारे सामने सबसे बड़ा संकट यही है कि भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने की आपाधापी में हम नैतिक मूल्यों को खोते जा रहे हैं। पाश्चात्य सभ्यता की बाहरी चकाचौंध में हम अपने देश की महानतम संस्कृति और उसके मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। हम भूल गए हैं कि संस्कारों से पूरी दुनिया को जीत सकते हैं और अहंकार से सब कुछ जीता हुआ भी हार सकते हैं। हमारे संस्कार ही हमारे व्यक्तित्व का आईना है। जो इंसान अच्छे विचारों और अच्छे संस्कारों को पकड़ लेता है फिर उसे हाथ में माला पकड़ने की जरूरत नहीं पड़ती। यदि अकाल हो अनाज का तब मानव भूख से मरता है किन्तु यदि अकाल हो संस्कारों का तो मानवता मरती है। उचित ही कहा गया है- "संस्कारों से बड़ी कोई वसीयत नहीं और ईमानदारी से बड़ी कोई विरासत नहीं।"
यदि हम अपनी संतान को सुसंस्कार देना चाहते हैं तो सर्वप्रथम वे संस्कार हमें स्वयं अपने अन्दर ही अंकुरित करने होंगे ताकि हम अपनी संतान को देने में सक्षम हो सकें। बच्चों को संस्कार तो अपने घर से ही मिलते हैं। यदि बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दिए जायेंगे तो उसका पछतावा आजीवन रहेगा।
कहा जाता है कि "अच्छे संस्कार किसी मॉल में नहीं मिलते। ये तो वो नींव है, जो परिवार के माहौल से जुड़ती है। आज इस बात की महती आवश्यकता है कि युवा पीढ़ी को संस्कार सिखाये जाए, उनके चरित्र को बेहतर बनाया जाए। सुन्दर वस्त्र पहनने मात्र से किसी के संस्कारों की पहचान नहीं होती। संस्कार तो वह पौधा है जो अच्छी सोच और अच्छे आचरण से बड़ा होता है। संस्कार से ही मानव अच्छे चरित्र के साथ समाज में खड़ा होता है। जिस व्यक्ति में संस्कारों की कमी होती है, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकता। जीवन में यदि संस्कार और मर्यादा न हो तो पतन निश्चित है। संस्कारों से ही बड़प्पन प्राप्त होता है। आपकी वाणी और व्यवहार ही बता देता है कि आपका परिवार कैसा है? किसी ने उचित ही लिखा है-
"हैरान हूँ देखकर लोगों के अनोखे संस्कार, रोज मंदिर में पूजा करें, माँ-बाप का करे तिरस्कार।" सत्य है संस्कार ही माँ-बाप की सेवा करना सिखाता है।
संस्कारों के महत्व और वर्तमान परिवेश में उसकी उपयोगिता एवं आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए 'संस्कार रश्मियां' कृति में युवा पीढ़ी को संस्कारित करने के उद्देश्य से विभिन्न विषयों पर ज्ञानवर्द्धक एवं उत्प्रेरक इक्यावन लेख अत्यन्त सरल, सरस और प्रवाहमयी भाषा में लिखे गए हैं।
हमें पूर्ण विश्वास है कि सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए यह कृति अत्यन्त सार्थक एवं उपयोगी सिद्ध होगी।
हम अपने प्रयास में कहां तक सफल हुए हैं इसका निर्णय तो सुधि पाठकगण ही करेंगे।
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