शिष्टाचार एक ऐसी अनुशासनात्मक और कानूनी संस्था है, जिसकी कोई आचार्य संहिता अभी तक अधिकारिक या सरकारी तौर पर लिखी गयी नहीं है। यद्यपि भारतीय धर्म ग्रंथों में अर्थात हमारे वेद-पुराण उपनिषदों में शिष्टाचार के कायदे-कानून से सम्बंधित सैकड़ों-हजारों बातों को प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा लिख दिया गया है। आजकल अनेक संत महात्मा लोग अपने कथा-प्रवचनों में उन बातों का जिक्र भी किया करते हैं परन्तु इस विषय पर सरल भाषा में लिखा गया कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
सौभाग्य से हमारे देश में अब ऐसा कानून बन गया है कि महिलाओं के प्रति निर्धारित किए गए शिष्टाचार्य के नियम या कानून का किसी ने भी जरा सा उल्लंघन किया और उसकी वजह से महिला की भावनाओं को ठेस पहुँची तो वह पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज करवाकर शिष्टाचार का उल्लंघन करने वाले को सलाखों के पीछे भी पहुँचा सकती है। यहाँ तक कि अगर किसी युवक ने किसी स्त्री या लड़की की ओर गलत इशारा भी कर दिया तो युवती उसी को आधार बनाकर मनचले को कानून से दण्ड दिलवा सकती है।
प्रस्तुत पुस्तक में शिष्टाचार को 'मानव-धर्म' के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि प्राचीन भारत में कई हजार वर्ष पहले ही इसको इस रूप में मान्यता दी जा चुकी थी। आज पुनः आवश्यकता इस बात की है कि शिष्ठाचार को सभी धर्म एवं सम्प्रदायों के लोग न केवल अपना आत्मिक धर्म समझें बल्कि निष्ठा पूर्व वे इसके पालन में रुचि लें। तभी मानव समाज को और विश्व को बेहतर बनाया जा सकता है।
इस ग्रंथ में न केवल शिष्टाचार सम्बंधी नियमों को सरल भाषा में समझाया गया है बल्कि शिष्टाचार उल्लंघन के दुष्परिणाम कानूनी दावपेंच के रूप में भी दिए गये हैं।
संसार में हर संस्थान के अपने कायदे-कानून होते हैं, चाहे वह संस्था राष्ट्र हो, समाज हो, प्रशासन हो, कोई आध्यात्मिक, राजनैतिक अथवा सामाजिक संस्था हो अथवा व्यक्ति के अपने द्वारा खड़ी की गयी 'परिवार' नामक सबसे छोटी संस्था ही क्यों न हो।
प्रत्येक संस्था का अपना अनुशासन और सीमाएँ होती हैं। शिष्टाचार को भी मैं मानव द्वारा खड़ी की गयी अन्तर्विवेक की संस्था मानता हूँ। इस अद्भुत संस्था में बाह्य पुलिस और कानून (भारतीय दण्ड संहिता) का कोई दखल नहीं होता है। आदमी खुद ही अपने नीति नियम, अनुशासन, मर्यादा और कार्य करने के दायरे निश्चित करता है।
शिष्टाचार एक ऐसी अनुशासनात्मक और कानूनी संस्था है, जिसकी कोई आचार संहिता अभी तक अधिकारिक या सरकारी तौर पर लिखी गयी नहीं है। यद्यपि भारतीय धर्म ग्रंथों में अर्थात हमारे वेद-पुराण उपनिषदों में शिष्टाचार के कायदे-कानून से सम्बंधित सैकड़ों-हजारों बातों को प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा लिख दिया गया है। आजकल अनेक संत महात्मा लोग अपने कथा-प्रवचनों में उन बातों का जिक्र भी किया करते हैं परंतु इस विषय पर सरल भाषा में लिखा गया कोई ग्रंथ मुझे उपलब्ध नहीं हो सका था।
मेरी यह अभिलाषा थी कि हमारे देश के नौनिहाल बच्चे और बड़ी उम्र के स्त्री-पुरुष भी शिष्टाचार की महिमा को गहराई से समझें तथा अपनी जिंदगी में उससे जुड़ी शिक्षाप्रद बातों का पालन करें। जब भारत का हर जन शिष्टाचारी या सदाचारी बनेगा, तभी हमारा देश सही मायने में तरक्की या उन्नति कर पाएगा।
ऐसी ही अभिलाषा और ऐसे ही चिंतन ने इस पुस्तक को जन्म दिया। इस ग्रंथ में न केवल शिष्टाचार सम्बंधी नियमों को सरल भाषा में समझाया गया है बल्कि शिष्टाचार उल्लंघन के दुष्परिणाम कानूनी दावपेंच के रूप में भी दिए गये हैं।
लेकिन ये कानूनी दावपेंच भारतीय दण्ड संहिता या आई.पी.सी. की धाराओं की तरह कठिन और पेचीदे नहीं है। सच बात तो यह है कि शिष्टाचार के उल्लंघन से न तो किसी व्यक्ति की जान जाती है और न किसी के शरीर को गहरी क्षति पहुँचती है। यही कारण है कि शिष्टाचार न मानने वालों पर और शिष्टाचार का उल्लंघन करने वाले पर न तो कानून की धाराएँ लगाई जा सकती हैं और न उन्हें पकड़ कर जेल में बंद किया जा सकता है।
सौभाग्य से हमारे देश में अब ऐसा कानून बन गया है कि महिलाओं के प्रति निर्धारित किए गए शिष्टाचार के नियम या कानून का किसी ने जरा सा भी उल्लंघन किया और उसकी वजह से महिला की भावनाओं को ठेस पहुँची तो वह पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज करवाकर शिष्टाचार का उल्लंघन करने वाले को सलाखों के पीछे भी पहुँचा सकती हैं। यहाँ तक कि अगर किसी युवक ने किसी स्त्री या लड़की की ओर गलत इशारा भी कर दिया तो युवती उसी को आधार बनाकर मनचले को कानून से दण्ड दिलवा सकती हैं।
तथापि अपने माँ-बाप की बात न मानना, घर आए मेहमान का सत्कार न करना, बुजुर्गों से जबान चलाना आदि शिष्टाचार के उल्लंघन की कई बातें ऐसी हैं जिसके मामले में अदालत और पुलिस कुछ नहीं कर सकती। ये बातें घर-परिवार और समाज के माहौल में ही गलत समझी जाती हैं लेकिन इन बातों से किसी को प्रत्यक्ष शारीरिक चोट या मानसिक क्षति पहुँचने का कोई पक्का सबूत न मिलने के कारण पुलिस ऐसे व्यक्ति के खिलाफ किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं कर पाती है।
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