प्रस्तावना
आयोग द्वारा पाठ्यक्रम परिवर्तित एवं परिवर्धित किये जाने के क्रम में प्रथम व्यावसायिक से ही यह प्रक्रिया प्रारम्भ करते हुए अष्टांग हृदय के स्थान पर संहिता अध्ययन नामक विषय प्रारम्भ किया है। इसमें अष्टांग हृदय सूत्र स्थान के 15 एवं चरक सूत्र स्थान के एक से बारह अध्यायों को लिया है। साथ ही संहिता परिभाषा, नामकरण, बृहत्त्रयी एवं लघुत्त्रयी इनके प्रणेता, आचार्य, व्याख्याकार, प्रतिसंस्कर्ता एवं व्याख्या वर्णन, तन्त्रयुक्ति, तन्त्र गुण दोष, रचना शैली, भाषा शैली, अनुबन्ध, त्रिविध ज्ञानोपाय एवं विशेष अष्ट प्रश्न आदि शास्त्र अध्ययन एवं समझने की दृष्टि से पाठ्यक्रम में दिये हैं। जिनकी आवश्यकता भी थी।
लेखक आचार्य वैद्य ताराचन्द शर्मा जी ने अनेक विषयों पर छात्रोपयोगी पुस्तकें लिखी है। उसी क्रम में नये पाठ्यक्रम की संस्कृत विषय के साथ संहिता अध्ययनम् भी प्रथम बार लिखी गई है। आपने अनेक वर्षों तक अध्यापन कार्य किया है एवं मूलचन्द हॉस्पीटल में वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी भी रहे हैं। वर्तमान में आचार्य जी दिल्ली के संस्कृत आयुर्वेद विद्वान, जाने माने वरिष्ठ नाड़ी चिकित्सक एवं विद्यापीठ के राष्ट्रीय चिकित्सक गुरु तथा अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन में विद्यापीठाध्यक्ष हैं।
पुस्तक में यथावश्यक सभी बिन्दुओं पर उपयोगिता की दृष्टि से प्रकाश डाला है। साथ ही प्रत्येक अध्याय में आये विशेष विषय यथा उपवास से ओटोफैगी प्रक्रिया, मेन्टल हेल्थ एवं माइक्रोबायोटा, प्रकृति की आधुनिक परिपेक्ष्य में समीक्षा, कर्क एवं मकर संक्रान्ति की दोनो अयनों के निर्माण में आधुनिक विचारधारा, दिनचर्या का सर्केडियन रिम बनाने में भूमिका, स्नेहाभ्यंग से ऊतक पोषण की प्रक्रिया आदि अनेक प्रसंगों को स्पष्ट किया है।
मैं लेखक को बधाई देता हूँ तथा पुस्तक छात्रों के लिए अवश्य उपयोगी सिद्ध होगी ऐसी कामना करता हूँ।
प्राक्कथन
प्रस्तुत पुस्तक संहिता अध्ययनम् प्रथम व्यावसायिक का नवीन विषय है। इसमें संहिता (बृहत्त्रयी) सम्बन्धी ज्ञान, संहिताओं का अध्ययन करते समय जिन सिद्धान्तों का ध्यान रखना होता है एवं जिनके ज्ञान से संहिता का अध्ययन आसान होता है उन सिद्धान्तों के साथ अष्टांग हृदय के 15 अध्याय सूत्र स्थान से एवं 12 अध्याय चरक सूत्र स्थान से लिए है। इनमें भी उपवास, दिनचर्या की सर्केडियन् रिदम् बनाने की भूमिका, स्नेहाभ्यंग का ऊतक पोषण में महत्व, सोहित्य मात्रा, उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने में मकर एवं कर्क संक्रान्ति की भूमिका आधुनिक दृष्टि से प्रकृक्ति के गुणात्मक एवं मात्रात्मक मूल्यांकन, माइक्रोबायोम संरचना एवं मानसिक स्वास्थ्य तथा चिकित्सकीय आचरण पर आधुनिक वैज्ञानिक विचारों का भी यहां समावेश किया है।
पुस्तक के तैयार करने में वैद्य ए, प्रो. भारत वत्स एम.डी. काय चिकित्सा तथा ए, प्रो. वीना शर्मा ने सहयोग किया। लेखन एवं प्रूफ रोडिंग में वैद्य मनोज शर्मा एवं अभिजीत शर्मा ने विशेष रूप से सहयोग किया। पुस्तक के अन्तिम चरण में वैद्या ईन्दु एवं वैद्या प्राची के आद्योपान्त पढ़कर प्रति तैयार की। एतदर्थ सभी को धन्यवाद।
विशेष रूप से अपने व्यस्त समय में से भूमिका लिखने के लिए वैद्य मुकुल पटेल, कुलपति जामनगर आयुर्वेद विद्यालय ने समय निकाला। उनका विशेष आभार।
त्री प्रेमचन्द ने विषय को टकित करके प्रकाशन में विशेष सहयोग दिया। अतः आप साधुवाद के पात्र है।
लेखक परिचय
आचार्य वैद्य ताराचन्द शर्मा एम.डी. आयुर्वेद, स्व पं. रामदत्त जी शर्मा के सुपुत्र, मूल निवासी बिसाऊ, झुन्मुनू (राजस्थान) ने अपना आयुर्वेद अध्ययन वैद्य मुरारी मिश्र की एवं वैद्य रामकृष्ण शर्मा जी दण्ड के सानिध्य में कर्माभ्यास करते हुए आयुर्वेदाचार्य उपाधि प्राप्त की, १९६८ से १९७८ तक जयपुर एवं हरियाणा के विभिन्न महाविद्यालयों में अध्यापन कराते हुए पदार्थ विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान, आयुर्वेद का इतिहास एवं द्रव्यगुण विज्ञान आदि विषयों पर पुस्तकों का लेखन किया। १९८० में पंजाब विश्वविद्यालय पटियाला से एम. डी. आयुर्वेद की उपाधि प्राप्त कर दिल्ली के मूलचन्द हॉस्पिटल में वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी के पद पर पं हरिदत्त जी शास्त्री एवं श्री मुकुन्दीलाल जी द्विवेदी के सानिध्य में आयुर्वेद विश्वकोश तैयार किया जिसका एक भाग "पन्चकर्म चिकित्सा विज्ञान चौलम्बा से प्रकाशित हो चुका है। १९९५ में वैद्य शिवकुमार जी मिश्र पूर्व सलाहकार आयुर्वेद, भारत सरकार के निर्देशन में संकलन कार्य पूर्ण कर मूलचन्द से निवृत्ति लेकर १९९५ से मॉडल आई हॉस्पिटल, लाजपतनगर में अधीक्षक आयुर्वेद विभाग के पद पर कार्य कर रहे हैं। साथ ही स्वतंत्र चिकित्सा भी कर रहे हैं।
आपके लेख लगभग २०० पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं तथा अनेक सेमीनारों में शोधपत्र वाचन भी किये हैं। आप दिल्ली के जाने-माने सिद्धहस्त नाड़ी चिकित्सक है। आपकी ३५ पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। आपने केन्द्रीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान संस्थान की पाँच पुस्तकों वैद्य मनोरमा, अभिनव चिन्तामणि, बृहत योग तरंगिणी, रसमुन्जूषा, वैद्यक संग्रह का हिन्दी अनुवाद किया है। विगत ४० वर्षों से आप आयुर्वेद छात्रों में लेखक के रूप में प्रसिद्ध व्यक्त्तित्व के धनी हैं। आपको अनेक सख्यानों ने अनेक मानद उपाधियों शताब्दी महर्षि, राजस्थान श्री, आयुर्वेद विश्व गौरव आयुर्वेद महाप्रयाण प्रदान की है। वर्तमान में आप राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ, दिल्ली के राष्ट्रीय गुरु एवं महासम्मेलन के मंत्री है। आप दिल्ली के जाने-माने नाड़ी चिकित्सक हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ द्वारा आपको लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया है। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, सरिता विहार, दिल्ली द्वारा टीचर्स-डे पर सम्मान-पत्र दिया गया है एवं दिल्ली सरकार द्वारा वरिष्ठ नागरिक सम्मान" से सम्मानित किया गया है।
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