भूमिका
भारतीय संस्कृति के इस विकासोन्मुख युग में संगीत कला का क्षेत्र उत्तरोत्तर व्यापक एवं विस्तृत होता जा रहा है। क्रियात्मक संगीत की प्रधानता के साथ-साथ कलाकारों की अभिरुचि उसके सिद्धान्तों और आदर्शों के अनुशीलन की ओर उन्मुख हो रही है। परिणामतः संगीत-शास्त्र विषयक अनेक ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। किन्तु संगीत-जगत् में अभी तक ऐसे ग्रन्थ प्रणीत नहीं हो सके हैं जिनमें एतद्विषयक मौलिक निबन्धों का सुन्दर संग्रह हो। अतएव संगीत शास्त्र में निबन्ध साहित्य के इस अभाव की पूर्ति के लिए मैंने महत्त्वपूर्ण विषयों का सम्यक् चयन कर प्रस्तुत ग्रन्थ निर्मित किया है, जिसमें संगीत के छात्रों तथा अध्यापक की जटिल समस्याओं का सुन्दर समाधान है। प्रस्तुत ग्रन्थ 'संगीत निबन्ध माला' में समिति के प्रथम वर्ष से लेकर संगीत प्रवीण तक तथा हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट से बी.ए., एम.ए. तक के परीक्षार्थियों के शैक्षिक स्तर को ध्यान में रखते हुए निवन्धों का चयन किया गया है। वैसे तो मेरे संगीत विषयक अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, किन्तु संगीत निबन्ध साहित्य का यह ग्रन्थ मेरा प्रथम प्रयास है। साधारण विषयों से लेकर गम्भीर-से-गम्भीर विषयों का प्रतिपादन अत्यन्त सुगम शैली में इस प्रकार किया गया है कि संगीत शास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए यह अत्यन्त सहायक सिद्ध होगा। मुझे आशा और विश्वास है कि आधुनिक संगीत-जगत् मेरे इस उपयोगितात्मक प्रयास का अभूतपूर्व स्वागत करेगा।
लेखक परिचय
पाण्डत सागहीश लागयणाः पाठक बीसवीं शताब्दी में संगीत शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं उसे प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले व्यक्तियों में पाठक जी का महत्वपूर्ण स्थान है। 15 जुलाई 1906 को प्रयाग के एक सरयूपारीण ब्राहाण पण्डित बड़ी प्रसाद पाठक के घर में आपका जन्म हुआ। संगीत कला के प्रति उनकी रुचि शैशवास्था से ही बलवती रही, अतः प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा के साथ संगीत की भी शिक्षा उन्होंने प्राप्त की। पारिवारिक परम्परा में कर्मकाण्ड प्रमुख वृत्ति थी। पाठक जी उसमें प्रवृत्त न हो सके। वह संगीत शिक्षण में निष्णात् होने की ललक सैंजोये कलकत्ता चले गये। वहाँ पर बंगला फिल्मों के पार्श्व संगीत में हारमोनियम भी बजाना पड़ता था। परिणामतः पाठक जी ने न केवल गायन वरन् वादन में भी प्रवीणता अर्जित की। इसी समय सन् 1926 में श्री बैजनाथ सहाय ने प्रयाग संगीत समिति की स्थापना की और उसी के कार्य से कलकत्ता में श्री पाठक जी से उनकी भेंट हुई। उनसे प्रभावित होकर श्री बैजनाथ सहाय जी ने प्रयाग संगीत समिति में संगीत शिक्षक के रूप में उन्हें नियुक्त कर दिया। धीरे-धीरे अपने सरल स्वभाव और एकनिष्ठ लगन से 1949 में प्रयाग संगीत समिति के रजिस्ट्रार का पद ग्रहण किया। आकाशवाणी के नियमित कलाकार के रूप में आपका नाम संगीत जगत् में विख्यात हो गया। प्रयाग संगीत समिति के परीक्षा केन्द्रों में वृद्धि होने लगी। अपनी कर्मनिष्ठा के बल पर वह प्रयाग संगीत समिति के रजिस्ट्रार पद तक पहुँच गये। उनके कार्यकाल में प्रयाग संगीत समिति की प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि हुई। 7 फरवरी, 1972 को श्री पाठक जी के निधन के समय संगीत समिति में केन्द्रों की संख्या 1200 से ऊपर थी।
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