पुस्तक परिचय
इस ग्रन्थ में प्रथम ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना, पुनः स्वस्तिवाचन, शान्तिपाठ, तदनन्तर सामान्य-प्रकरण, पश्चात् गर्भाधानादि अन्त्येष्टिपर्यन्त सोलह संस्कार क्रमशः लिखे हैं और यहां सब मन्त्रों का अर्थ नहीं लिखा है, क्योंकि इसमें कर्मकाण्ड का विधान है, इसलिए विशेषकर क्रिया-विधान लिखा है और जहां-जहां अर्थ करना आवश्यक है, वहां-वहां अर्थ भी कर दिया है। यहां तो केवल क्रिया करना ही मुख्य है। जिन के द्वारा शरीर और आत्मा सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त हो सकते हैं और सन्तान अत्यन्त योग्य होते हैं, इसलिए संस्कारों का करना सब मनुष्यों को अति उचित है।
प्रकाशकीय
हमारे परमपूज्य प्रपितामह (परमात्मा) स्व. रमेश चन्द्र गुप्ता जो आर्य समाज के कर्मठ व प्रमुख सेवकों में से एक थे, उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पण करने के उद्देश्य से स्वामी दयानंद सरस्वती कृत संस्कार विधि व सत्यार्थ प्रकाश का प्रकाशन किया जा रहा है।
1955 में स्थापित गर्ग कंपनी बुकसेलर की स्थापना भी स्व. रमेश चन्द्र गुप्ता ने ही की थी, जो परिवार विस्तार व समय के अंतरालानुसार विभिन्न संघों में विभक्त होती रही है।
स्व. रमेश चन्द्र जी ने चिरकाल तक आर्य समाज की निष्ठापूर्वक सेवा की थी। उनकी अनमोल सेवाओं को दृष्टिगत रखते हुए ही संस्कार विधि व सत्यार्थ प्रकाश जैसे अनमोल ग्रंथों का प्रकाशन आर्य समाज से जुड़े लोगों व अन्य पाठकों के हितार्थ व ज्ञानवर्द्धन हेतु किया जा रहा है। आशा है, पाठकगण लाभान्वित होंगे।
भूमिका
सब सज्जन लोगों को विदित होवे कि मैंने बहुत सज्जनों के अनुरोध करने से श्रीयुत महाराजे विक्रमादित्य के संवत् १९३२ कार्तिक कृष्णपक्ष ३० शनिवार के दिन 'संस्कारविधि' का प्रथमारम्भ किया था। उसमें संस्कृतपाठ सब एकत्र और भायापाठ एकत्र लिखा था। इस कारण संस्कार करानेवाले मनुष्यों को संस्कृत और भाषा दूर- दूर होने से कठिनता पड़ती थी और जो एक हजार पुस्तक छपे थे, उनमें से अब एक भी नहीं रहा। इसलिए श्रीयुत महाराजे विक्रमादित्य के संवत् १९४० आषाढ़ बदि १३ रविवार के दिन पुनः संशोधन करके छपवाने के लिए विचार किया।