धार्मिक अनुष्ठानों में मंत्रों के लिए एक विशेष स्थान है। मननात् त्रायते इति मंत्रः। मनन करने से साधक को इष्टार्थप्राप्ति के माध्यम से बचाता है। इसलिए इन्हें मंत्र नाम दिया गया है। मंत्र का अर्थ है रहस्य भी। अर्थात् इन्हें गुरु-शिष्य परंपरा से हमें जानना चाहिए ।।
वैदिक, पौराणिक, तांत्रिक आदि कई प्रकार के मंत्र होते हैं। अमंत्रमक्षरं नास्ति अर्थात् सभी अक्षर मंत्र के भाग हैं। लेकिन कौन से अक्षरों को कैसे जोड़ने से कौन सा मंत्र बनता है, यह दुर्जेय है। इन मंत्रों की जानकारी के लिए ही शारदा तिलक, प्रपंचसार, मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि आदि कई प्रमाण ग्रंथ हैं। इनमें प्रत्येक ग्रंथ में इष्टदेवताओं के मंत्रों को नित्य से काम्यानुष्ठान के लिए, रोगनिवृत्ति के लिए, शापनिवृत्ति के लिए, भक्तिज्ञानप्रद के रूप में कई प्रकार से मंत्रों की उपासना को बताया गया है। प्रत्येक मंत्र को ऋषि, देवता, छंद, बीज, शक्ति, कीलक, अंगन्यास, करन्यास, ध्यानश्लोकों के साथ ही उपदेशित किया जाता है। इस प्रकार किए गए मंत्रानुष्ठान ही हमारे इष्टार्थदायक होते हैं। इन मंत्रानुष्ठानों को दो प्रकार से देखा जा सकता है। केवल भगवत प्रीत्यर्थ तत्वज्ञान के साधनों के रूप में करने वाले मंत्रानुष्ठान एक प्रकार हैं। इष्टार्थप्राप्त करने के लिए हमारे रोगादि क्लेश निवृत्ति के लिए, गुरुशाप, पितृशाप, मातृशाप, विप्रशाप, स्वीशाप, सर्पशाप आदि की निवृत्ति के लिए करने वाले काम्यानुष्ठान दूसरे प्रकार के हैं। लेकिन दोनों प्रकार के अनुष्ठान ही शास्वीय हैं। इन मंत्रानुष्ठानों में मंत्रजप, देवतार्चना, देवताभिषेक, देवतोदेश्य उक्तद्रव्यों से गृह्योक्त विधान में करने वाले होम आदि सभी शामिल हैं। केवल मंत्रजप से फल नहीं मिलता है, ऐसी कोई भी अभिप्राय नहीं है। तज्जपः तदर्थभावना मंत्रार्थ को अनुसंधान करने वाले जप ही उत्तम साधन हैं। लेकिन केवल जप करने वालों के लिए मन की एकाग्रता प्राप्त करना कठिन है। इसलिए जप, अर्चना, अभिषेक, होम आदि के साथ करना सामान्य अनुष्ठाताओं के लिए सुलभ साध्य है ।।
यः शिवो नामरूपाभ्यां.... इस वाक्य के अनुसार शिव का नाम भी मंगलमय है। उनका सगुण स्वरूप भी मंगलमय है। ईशानः सर्वविद्यानाम् शिव सभी विद्याओं के अधिदेवता हैं। शिव की कृपा से हमें सभी विद्याएं प्राप्त होती है। केवल ऐहिक, आमुष्मिक फल देने वाली विद्या ही नहीं, ब्रह्मविद्या भी शिव की कृपा से ही प्राप्त होती है। इसलिए ही महानारायणोपनिषद् में स नो देवः शुभया स्मृत्या संयुनक्तु -उस महादेव ने सृष्टि की शुरुआत में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा को सभी विद्याएं प्रदान की हैं। वही हमारे चित्तशुद्धि को उत्पन्न कर हमें आत्मज्ञान प्रदान करने योग्य है ।।
ऐसे ही उत्कृष्ट नाम वाले शिव के मंत्रों को इस ग्रंथ के लेखक रवींद्र शर्मा कोणनकट्टे ने शारदा तिलक, प्रपंचसार, मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि आदि कई प्रमाण ग्रंथों से संग्रहित किया है। जप, होम, अर्चन, अभिषेक इन चार प्रकार से मंत्रों का प्रयोग होता है। इस ग्रंथ में ग्रंथकार ने प्रमाण ग्रंथों में वर्णित मंत्रीद्धार को पहले दिया है। उसके बाद ऋषि छंदो देवता न्यास बीज शक्ति कीलक, करन्यास अंगन्यास और ध्यानश्लोकों के साथ मंत्र को लिखा है। इसके बाद विस्तार से पूजा-अभिषेक के क्रम को बताया है। फिर बताया है कि किस मंत्र का कितनी संख्या में जप करना चाहिए और किस कामना के लिए किन इल्यों का होम करना बाहिए। प्रसिद्ध रुद्र होम प्रयोग के साथ-साथ रुद्रानुवाक प्रयोगों को देना भी अत्यंत उपयुक्त है। इस प्रकार यह ग्रंथ मुमुक्षुओं के लिए भी उपयुक्त है और वैदिकों के लिए भी उपयुक्त है। ज्योतिषियों के लिए भी उपयुक्त है और सामान्य जनों के लिए भी उपयुक्त है। फलार्थियों के लिए भी उपयुक्त है। वैदिकों के लिए जप होम आदि कार्यक्रमों को करवाने के लिए यह ग्रंथ बहुत ही उपयुक्त है। पौरोहित्य में नए-नए जुड़े युबा पुरोहितों के लिए तो यह ग्रंथ किसी किताव की तरह उपयोगी है। इस अंबकार ने पहले से ही 'गणपति मंत्रोपासना दीपिका', 'संक्षिप्त नित्यानुष्ठान दीपः' जैसे ग्रंथ लिखे है। यह ग्रंथ भी जन-जन के हाथों में होना चाहिए। इस ग्रंबकार रवींद्र शर्मा से और भी कई ग्रंथों का संपादन होना चाहिए और महाजन, वैदिक, ज्योतिषी और फलार्थी लोगों को उनकी मेहनत और शोध का पूरा लाभमिलना चाहिए । इसे स्वीकार करने के लिए भगवान से प्रार्थना करता हूँ।
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