लेखक परिचय
आलोक रंजन
बिहार में जन्म व प्रारम्भिक शिक्षा । दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए.। 2005 के आसपास छपने की शुरुआत । कहानी, कविताओं के अतिरिक्त अखबारों में सामयिक लेखन। सी.आई.ई. दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा में स्नातक और परास्नातक करते-करते विद्यालयी शिक्षा में रुझान । सम्प्रति : हिमाचल में नवोदय विद्यालय में अध्यापन ।
पुस्तक परिचय
हमारे ऊपर जो पानी गिरता था, वह लगातार लुढ़कते हुए नीचे पेरियार नदी में चला जा रहा था। पानी की यात्रा कब की शुरू हुई होगी और कहाँ जाकर सम्पन्न होगी? क्या कोई यात्रा कभी समाप्त होती है? बारिश का यह पानी पहाड़ी से उतरते-उतरते नदी तक की यात्रा करेगा और इसे बीच में हम मिल गये। इसने हमें स्वीकार किया और हमें भिगोते, आनन्द से सराबोर करते हुए भी अपनी यात्रा नहीं रोकी। इसका शुक्रिया! शायद पानी के देश में अपने पीछे वालों को जगह देते हुए, आगे बढ़ते रहने की रवायत होगी, इसलिए यह रुकता नहीं! इसका फिर से शुक्रिया! तेज़ ढाल पानी की शक्ल ही बदल देती है। वह पानी दूध में बदल जाता है। भौतिकशास्त्र में इसके लिए कोई सिद्धान्त होगा। दूध हमारे ऊपर से बहते हुए पत्थरों तक को तृप्त करते हुए नीचे बहा जा रहा है। पुरा-आख्यानाओं का अमृत यही पानी होता होगा।
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