इस कृति द्वारा श्री ज्योतिबा फुले तथा ई. बी. रामास्वामी नायकर के सामाजिक चिन्तन पक्ष को उजागर करने का एक अल्प प्रयास हुआ है। इन दोनों महापुरुषों के चिंतन ने तत्कालीन समाज और राजनीति दोनों में उबाल ला दिया। समाज में फैली संकीर्णता दुर्व्यवहार तथा छुआछूत की बीमारी ने शिक्षा तथा वैज्ञानिक सोच के क्षेत्र में अनेक श्रेणियों को जन्म दिया था। अतः इन दोनों महापुरुषों ने निडर होकर पददलितों में शुद्ध स्वाभिमान का भाव जगाया। फुले माली जाति में उत्पन्न हुए थे। और पेरियार तमिलनाडु के नायकर जाति में। उत्तर भारत में जिन्हें (पाल) गड़ेरिया कहा जाता है। निर्धारित श्रेणी के अनुसार ये दोनों शूद्रवर्ण के अन्तर्गत माने गए हैं। इनकी शिक्षा में भी भेदभाव किया जाता था। उन दोनों के भीतर मनुष्यता की गहरी संवेदना थी अतः इसे वे उपेक्षा घृणा तथा अवमानना का विषय मानते थे। उनका विचार था कि वर्ण व्यवस्था तथा जातिप्रथा भेदभाव के लिए नहीं है। यदि समाज में निर्बल वर्ग भी है तो वह मानवता के नाते तत्समान सेवा और आदर का अधिकार रखता है। सामाजिक विषमता किसी वर्ग के आखेट के लिए नहीं है, वह सहानुभूति तथा अपने साथ समान रूप से व्यवहार के लिए है। क्योंकि कभी समाज के सभी वर्ग को बिल्कुल समाप्त नहीं किया जा सकता। यद्यपि ये दोनों महापुरुष जाति प्रथा का अंत कर देने का लक्ष्य रखते हुए नए समाज की अवधारणा के हिमायती थे किन्तु अन्त में ऐसा हो नहीं सका।
तथापि सामाजिक समता और राजनीति के क्षेत्र में बहुत जोरों का जागरण संदेश पहुँचा। अनेक राजनीतिक परिवर्तन इसके प्रमाण हैं। समाज से मिथ्याभिमान पर नियन्त्रण हुआ। पददलितों में स्वाभिमान की ज्योति जली। निम्न कहे जाने वालों में जागरण का उन्मेष हुआ और बहुत सारे अंधविश्वासों का अन्त हुआ। इन दोनों ने अपने को सत्य धर्म का पक्षधर कहा और आजीवन मानव सेवा में रत रहने का इनका संकल्प कुछ उतार-चढ़ाव के साथ पूरा हुआ।
इस पुस्तक में जिन सामाजिक चिन्तन या विचार धारा के पक्ष को संवलित करते हुए नामकरण किया गया है, उसकी वैज्ञानिकता स्वयं सिद्ध है। पहली बात तो यह कि इन दोनों महापुरुषों ने सामाजिक जीवन में सुधार लाने की प्रक्रिया से ही सुधार कार्यों का श्रीगणेश किया। हर व्यक्ति के सामाजिक पक्ष को देखने से ही उसके व्यक्तित्व का सुंदर तथा असुन्दर पक्ष उद्घाटित होता है। इसके बाद शैक्षिक और राजनीतिक पक्ष की शुरुआत होती है। सामाजिक स्तर पर ही कुरीतियाँ सर्वप्रथम पनपती हैं। जीवन का अच्छा बुरा निर्माण यहीं से प्रारंभ होता है। अतः सामाजिक चिंतन में सुधार लाते ही शैक्षिक वातावरण और राजनीतिक परिवर्तन का भी प्रारंभहो जाता है। इन दोनों महापुरुषों के जीवन और विचारणा से यह निष्कर्ष भली भाँति प्रमाणित होता दिखाई देता है। इसी कारण इस कृति द्वारा सिद्धान्त पक्ष के साथ उन महापुरुषों के जीवन, विचार, पुरुषार्थ के भीतर उसके विनियोग पक्ष को भी उद्धृत किया गया है। इसी के भीतर उनका जीवन, सामाजिक अवबोध, जाति व्यवस्था, शैक्षिक विचारणा, समानता और सम्मान का आंदोलन सत्यशोधक समाज तथा राजनीतिक पार्टियों की स्थापना द्वारा किसानों की स्थिति में सुधार कार्यों का विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण के माध्यम उन दोनों की समानान्तर विचार धाराएँ बिल्कुल स्पष्ट हो जाती हैं। उनके जीवन पर्यन्त संघर्ष ने उनके विचारों में किस प्रकार प्रौढ़ता प्रदान की और पूरे समाज में क्रान्ति का एक अपूर्व संदेश पहुंचा।
नवयुवकों में संकीर्णता तथा अभद्रता के भाव निराकृत हुए तथा उनका स्थान उत्तम भावों ने ग्रहण किया। वे शिक्षा के माध्यम उस धरातल पर पहुँचने के लिए प्रोत्साहित हुए जहाँ जाकर लोगों में सच्चे अधिकार और कर्त्तव्य का ज्ञान हुआ करता है। सामाजिक अन्यायों का क्रमशः विगलन प्रारंभ हुआ और समाज उनकी अमित प्रेरणा से संस्फूर्त हुआ।
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