श्रीमद् भगवद्गीता एक अनुपम दर्शनशास्त्र है जो सम्पूर्ण मानव समाज के हितार्थ एक आदर्श जीवन पद्धति का सन्देश देता है। श्री वेदव्यास ने "महाभारत" में श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद के माध्यम से एक ऐसी योगनिष्ठ जीवन-पद्धति का मार्ग दर्शन किया है जो वर्तमान युग में भी उसी प्रकार उपादेय है जैसे किसी पुरातन समय में रही होगी। उन्होंने धर्म, कर्म, ज्ञान, भक्ति, योग, विराग, आत्मा, जीव, माया, ब्रह्म आदि गूढ़ विषयों की विशद विवेचना के साथ मनुष्य को अपने कर्तव्य का समुचित सनातन उपदेश दिया। इस प्रकार युद्ध के भयावह परिणाम से विचलित मोहग्रस्त अर्जुन को निष्काम भाव से कर्तव्यारूढ़ किया। श्रीमद् भगवद्गीता का गूढ़ ज्ञान संस्कृत भाषा में होने के कारण सामान्य जन की ग्राह्य बुद्धि से परे था जिसे सरल एवं सुबोध बनाने के लिए भाषाकार ने इसे हिन्दी भाषा में काव्यबद्ध करने का प्रयास किया है। अभिव्यक्ति पद्धति में तुलसीकृत 'रामचरितमानस' का अनुसरण किया गया है। अल्पज्ञान होने के नाते मैंने रूपान्तरण में यथा सम्भव संस्कृत शब्दों को ही तोड़ मरोड़कर सामान्य जन भाषा में रखने का प्रयास किया है जिससे शब्द भाव यथा सम्भव बना रहे। गीता-ज्ञान की लोकप्रियता के उद्देश्य से विरचित मेरे इस धृष्टतापूर्ण प्रयास को मेरी अल्पज्ञता मानते हुए पाठकगण त्रुटियों के लिए क्षमा करेंगे।
इस द्वितीय संस्करण के सम्पादन में संस्कृत महाविद्यालय, बड़ौदा के अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष डॉ० हरि प्रसाद पाण्डेय का विशेष सहयोग रहा है। उनकी ही प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से यह लघुग्रन्थ वर्तमान स्वरूप में पाठकवृन्द के समक्ष है।
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