पुस्तक परिचय
प्राचीन वेद-पुराणों से ऋषि-महर्षियों द्वारा उद्घाटित तंत्र-मंत्र विद्या की शक्तियों के द्वारा भौतिक अभिसिद्धियों के प्रयोग लोक-कल्याण की भावना से आज साधनालम्य हैं। प्रसिद्ध लेखक पं. वाई.डी. सरस्वती द्वारा प्रस्तुत इस पुस्तक में तंत्र-मंत्र साधनाओं का जो अनुशीलन किया गया है वह अत्यन्त सरल और जनसाधनारण के लिये बोधगम्य है। निःसंदेह जीवन को सुखी, समृद्ध और आनन्द से परिपूर्ण करने का इनका उद्देश्य सफल होगा।
भूमिका
प्राचीन काल से ही हमारे देश में मन्त्र तन्त्र साधना तपस्या इत्यादि मानसिक शक्तियों का हमारे वेदों, पुराणों, धर्मग्रन्थों के विशेष महत्व रहा है। यही साधना, तपस्या ही ऋषि-मुनियों की शक्ति की द्योतक (परिचायक) रही हैं। हमारे धर्मग्रथों, वेदों आदि में विभिन्न शक्तियों, देवताओं तक को हिला देने वाली मानवीय ताकतों का विशेष उल्लेख मिलता है, जो कि अपनी साधना तपस्या द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड तक को कम्पित करने की शक्ति अपने भीतर समाहित रखते हैं। हमारे सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद में गायत्री मन्त्र का विशेष उल्लेख मिलता है। कहते हैं उसका उच्चारण भर करने से इन्सान के अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं, जो मन को शांति प्रदान करता है। इसलिए इस मन्त्र का प्रतिदिन उच्चारण करना चाहिए, कहा भी गया है- "दूसरे के शिष्य के लिए विशेषकर भक्ति रहित के लिए यह मन्त्र कभी न देना चाहिए, इसकी शिक्षा भक्तियुक्त शिष्य को ही देनी चाहिए अन्यथा मृत्यु प्राप्त होती है। उपर्युक्त प्रमाण में यह बताया गया है कि तन्त्र एक विवान है उसकी बातें सब लोगों के सामने प्रकट करने योग्य नहीं होती, कारण यह है कि तान्त्रिक साधनाऐं बड़ी होती हैं वे उतनी ही कठिन हैं, जितना कि समुद्र के तले में घुसकर मोती निकालना। इसी प्रकार नट अपनी कला दिखाकर लोगों को मुग्ध कर देता है और प्रशंसा भी प्राप्त करता है, किन्तु यदि एक बार चूक जाय तो खैर नहीं। तन्त्र प्रकृति से संग्राम करके उसकी शक्तियों पर विजय प्राप्त करता है, इसके लिए असाधारण प्रयत्न करने पड़ते हैं और उनकी असाधारण ही प्रतिक्रिया होती है। पानी में बेला फेंकने पर यहाँ पानी जोर से उछाल खाता है और विस्फोट जैसी स्थिति दृष्टिगोचर होती है। तान्त्रिक साधक भी एक रहस्मय साधन द्वारा प्रकृति के अन्तराल में छिपी हुई शक्तियों को प्राप्त करने के लिए अपनी साधना का एक आक्रमण करता है। उसकी एक प्रतिक्रिया होती है. उस प्रतिक्रिया से कभी-कभी साधक के भी आहत हो जाने का भय रहता है। चन्दन के वृक्षों के निकट सपों का निवास रहता है गुलाब के फूलों में काँटे होते हैं, शहद प्राप्त करने के लिए मधुमक्खियों के डंक का सामना करना पड़ता है। जब बन्दूक की गोली चलाई जाती है तो जिस समय नली में से गोली बाहर निकलती है. उस समय वह पीछे की ओर एक झटका मारती है और भयंकर शब्द करती है यदि एक बंदूक चलाने वाला कमजोर प्रकृति का हो तो उस झटके से पीछे की ओर गिर सकता है। धड़ाके की आवाज से डर या घबरा सकता है। तलवार की धार पर चलने के समान ही तांत्रिक साधन होते हैं। उनके लिए पर्याप्त पुरुषार्थ: साहस, दृढ़ता, निर्भयता और धैर्य होना चाहिए। ऐसे व्यक्ति सुयोग्य अनुभवी गुरु की अध्यक्षता में यदि स्थिर चित्त से श्रद्धा पूर्वक साधना करें तो वे अभीष्ट साधन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। किन्तु यदि निर्बल मनोभूमि (मन रखने वाले) के डरपोक, सन्देहयुक्त स्वभाव वाले अश्रद्धालु, अस्थिर मति वाले लोग किसी साधना को करें और थोड़ा सा संकट उपस्थित होते ही उसे छोड़ भागें, तो पहले तो वैसा ही परिणाम होता है,
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