Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

उपासकाध्ययन- Upasakadhyayana: A Portion of the Yasastilaka-Champu of Somadeva Suri with Hindi Translation, Sanskrit Tika, Introduction & Indices Etc

$30.38
$45
10% + 25% off
Includes any tariffs and taxes
Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author Edited By Kailash Chandra Siddhanta Shastri
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Pages: 554
Cover: HARDCOVER
10.5x7.5 inch
Weight 1.30 kg
Edition: 2018
ISBN: 9789326352147
HBX516
Delivery and Return Policies
Usually ships in 3 days
Returns and Exchanges accepted within 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description

प्रस्तावना

प्रस्तुत उपासकाध्ययन सोमदेव मूरिकृत यशस्तिलकके अन्तिम तीन आश्वास है। स्वयं सोमदेवने इन्हें उपासकाध्ययन नाम दिया है। यशस्तिलकमें सोमदेव केवल यशोधर महाराजकी कथा न कहकर कुछ 'और' भी कहना चाहते थे। इस 'और' को समझनेके लिए यशस्तिलकको समग्र कथावस्तु तथा उसमें आये आनुषंगिक प्रसंगोंका परिचय आवश्यक है। इसी दृष्टिसे प्रस्तावनाको दो भागोंमें विभक्त किया है। पूर्वभागमें ययास्तिलककी कथावस्तु, उपासकाध्ययन तथा आनुषंगिक प्रसंगोंका विवेचन है और उत्तरभागमें उपासका ध्ययनका तुलनात्मक अध्ययन ।

पूर्वभाग

[ १ यशस्तिलककी कथावस्तु

यौधेय देशमें राजपुर नामका एक सुन्दर नगर था। उसमें चण्डमहासेनका पुत्र राजा मारदत्त राज्य करता था। वह नृग, नल, नहुष, भरत, भगीरथ और भगदत्त नामके प्राचीन राजाओंसे भी पराक्रमशाली था। उसके अन्तःपुरमें आन्त्र, बोल, केरल, सिहल, कर्नाट, सौराष्ट्र, कम्बोज, पल्लब और कलिग देशकी मुन्दरियोंका निवास था।

एक दिन बोरभैरव नामके कुलाचार्यने उससे कहा, "राजन्, तुम्हारी राजधानीमें जो चण्डमारीदेवी-का मन्दिर है, उसमें यदि देवीके सामने सब प्रकारके प्राणियोंकी बलि दो जाये और समस्त लक्षणोंसे युक्त मनुष्य-युगलका वध तुम स्वयं अपने हाथसे करो तो तुम्हें विद्याधरोंके लोकको विजय करनेवाली तलवारकी सिद्धि प्राप्त हो सकती है।" यह सुनकर मारदल राजाने असमयमें ही महानवमीको पूजाके बहानेसे समस्त जनताको मन्दिरमें बुलवाया और देवीके पादपीठके निकट बैठकर अपने रक्षक अनुचरोंको सब लक्षणोंसे युक्त मनुष्य-युगल खोजकर लानेका आदेश दिया।

चण्डमारीका मन्दिर बड़ा भयानक था। उसे देखकर स्वयं मृत्यु मी भयभीत होती थी। उसका परि-सर प्रलयकालकी रात्रिकी तरह भयानक महायोगिनियोंसे भरा हुआ था और अन्यभक्तोंका झुण्ड विविध प्रकारको आत्मयन्त्रणाजीमें संलग्न था। कहीं साधक अपने सिरोपर गुग्गुल जला रहे थे, कहीं अपनी शिराबों-को दीपककी तरह जलाते थे, कहीं गद्रको प्रसन्न करनेके लिए अपना रुचिरपान करते थे, कहीं कापालिक अपने शरीरसे मांस काटकर बेखते थे, कहीं अपनी आँत निकालकर मातृकाओंको प्रसन्न करते थे और कहीं अग्निमें अपने मांसको आहूति देते थे।

इसी समय सुदल नामके जैनाचार्य मुनिसंपके साथ राजपुर पधारे। नगरके बाहर एक सुन्दर उद्यान था, वहाँ सुन्दरियोंके साथ युवा पुरुष कोडामें मग्न थे। ऐसे स्वानको मुनियोंके आवासके अयोग्य जानकर सुदत्ताचार्य आगे बढ़ गये । आगे श्मशान भूमि थी। उससे आगे एक पर्वत था। उसोपर वह ठहर गये और मध्यकालीन कृतिकर्मसे निवृत्त होकर उन्होंने साधुओंको निकटवर्ती ग्रामोंमें गोचरी करनेका आदेश दिया।

उन साधुओंमें दो मुनिकुमार भी थे। एकका नाम अभयरुचि या और दूसरेका नाम अभयमती । दोनों सहोदर भाई-बहन थे और यशोधर महाराजके पुत्र यशोमतीकी रानी कुसुमावलोके गर्भसे दोनों ममज उत्पन्न हुए थे। कुसुमावली राजा मारदत्तकी बहन थी। दोनोंने कुमार अवस्थामें ही क्षुल्लकके बन रहण किये थे और सुदत्ताचार्यके साथ रहते थे। आचार्यने उन दोनों को नगरमें भोजनके लिए जानेका आदेश दिया। मार्गमें बक्तिके निमित्त एक मनुष्य-युगन्तको लाने के लिए भेजे गये राजसेवकांचे उनकी मुठभेड़ हो गयी। सेवकोंने उनसे बहाना किया कि आपके शुभागमनको जानकर एक महान् गुरु भवानीके मन्दिरमें आपके दर्शनोंके लिए उत्सुक है अतः इस ओर पधारनेको कृपा करें। सेवकोंकी मोषण आकृतिसे उन्हें किसी मात्री अनिष्टको आशंका तो हुई, किन्तु सब कुछ देवपर छोड़कर में दोनों मन्दिरकी ओर बल दिये।

चण्डबारीके उस महाभैरव नामके मन्दिरका दृश्य बहा विचित्र था। बलिके लिए लाये गये सब प्रकारके प्राणियोंसे मन्दिरका आँगन भरा हुआ था। सशस्त्र रक्षक उनकी रखवाली के लिए नियुक्त थे। उनके शस्त्रोंको देखकर भेड़, भैसे, औट, हाथी और घोड़े दूरसे काँप रहे थे। अपने रुधिरके व्यारी राक्षसीको देखकर मगर, मच्छ, वेड़क, कच्छप आदि जलचर जन्तु श्ररत थे। क्रॉच, चकवे, मुर्गे, जलकाक, राजहंस आदि विविध प्रकारके पक्षियोंको भी यही दशा थी। सिह बऔर भालू-जैसे हिंसक जन्तुओंमें भी भय छाया हुआ था। राजाके द्वारा मनुष्य-युगलका बलिदान होनेके पश्चात् इन सबका संहार होनेवाला था।

दोनों मुनिकुमारोंने मन्दिरके आँगनके मध्यमे तलवार सोचकर खड़े हुए राजा मारदसको देखा। उस समय वह ऐसा प्रतीत होता था मानो नदीके मध्यमें कोई पहाड़ खड़ा है और उसपर फणा उठाये हुए एक सर्प बैठा है। वहाँके भयानक वातावरणको देखकर अभयरुचिने चीरतापूर्ण दृष्टिसे अपनी बहनकी ओर देखा। उत्त के आसवको समझकर अभवमतिने भी निःशंकवित्तसे अपने भाईके मुखको ओर देखा। भाई बहनकी ओरसे आश्वस्त हुआ ।

उपर मारदत्त दोनों मुनिकुमारोंको देगाकर बड़ा प्रसन्न हुआ, उसके लोचनोंसे कलुपता बली गयी, सब इन्द्रियाँ करुणरसमें निमग्न हो गयीं। उसने मुनिकुमारोंको आसनपर बैठाया और विचारने लगा, इन मुनिकुमारोंको देखकर मेरा हृदय क्यों शान्त हो गया ? क्यों मेरा आत्मा आनन्दसे गद्गद हो रहा है, कहीं ये दोनों मेरे भानजा भानजी तो नहीं है? उस दिन मैने रैवतकसे सुना था कि वे दोनों कुमार अवस्थामें ही गृहत्यागी बन गये है।

राजाकी परिवर्तित प्रसनमुद्राको देखकर दोनों मुनिकुमारीने राजाको आशीर्वाद दिया। राजाने दोनों-को आशीर्वादात्मक मधुरवाणीसे अति प्रसन्न होकर पूछा, "आपका कौन-सा देश है, किस कुलको आपने अपने जन्मसे शोभित किया है और बाल्यावस्थामें ही आपने यह प्रव्रज्याका मार्ग क्यों स्वीकार किया ? कृपया बतानेका कष्ट करें।"

मुनिकुमार बोला, "राजन् ! यद्यपि मुनिजनोंके लिए अपना देश, कुल और दीक्षाका कारण बतलाना उचित नहीं है तथापि कुतूहल हो तो सुनिए- [ प्रथम आश्वास]

अवन्ती जनपदमें उज्जैनी नामकी नगरी है। उसमें यशोर्ष नामका राजा राज्य करता था। उसकी पत्नीका नाम चन्द्रमती था। राजा यशोर्ष और रानी बन्द्रमतीके यशोधर नामका पुत्र था ।

एक दिन राजा यशोर्धने अपने सिरमें एक सफेद बाल देखा और अपने पुत्र यशोधरके विवाह तथा राज्यारोहणका आदेश देकर साधु हो गये। बादको समारोहपूर्वक अमृतमती के साथ यशोधरका विवाह हुआ और विवाहके पश्चात् राज्याभिषेक हुआ। [ द्वितीय आश्वास]

तीसरे आश्वासमें राजा यशोधरको दिनचर्या, राजव्यवस्था आदिका विस्तृत वर्णन है।

एक दिन राजा यशोधर अपनी रानी अमृतमतीके महलमें सोनेके लिए गया। मध्यरात्रिके समय उसने देखा कि उसकी रानी शय्या छोड़कर उठी। आँख मूंदकर लेटे हुए राजाकी ओर बड़े ध्यानसे देखा और उसे सोया हुआ जानकर अपने वस्त्राभूषण उतार दासीके वस्त्र पहनकर जल्दी से महलसे निकल गयी। राजाको सन्देह हुआ। वह तुरत उठकर पंजोंके बल जसके पीछे-पीछे चल दिया ।

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories