कबीरपंथ में वंशों का खेल अब राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय तिकड़म-सा बन गया है। खेल कोई भी हो, वह अन्तरराष्ट्रीय बन ही जाता है बशर्ते कि खेल का अगुआ खिलाड़ी यानी उसका प्रवर्तक खटरागी और चतुर-चालाक हो। पंथ में वंश-खेल का जनक जालिम धरमदास है। कबीरपंथ में वंश का खेल खेलने के लिए उसने अपना नाम तक बदल लिया था। उसका पूर्व का नाम जुड़ावन साहू था। वह कबीरपंथ में शामिल होने से पूर्व दंड़ी-तराजू का खेल खेलने में माहिर था। जुड़ावन साहू ही कबीरपंथ में धरमदास बनकर पारिवारिक वंश के खेल का चौरस मैदान तैयार करता है।
कबीर साहब ने भी अपनी वाणी में एक-दो खेलों की चर्चा की है। गुड़वा-गुड़िया का एक खेल होता है जिसे बालबुद्धि के नादान बच्चे खेलते हैं। इस खेल को कबीर साहब 'लरीकन' यानी बालबुद्धि वाले बच्चों का खेल मानते हैं। कबीर साहब इस बालबुद्धि के खेल को छोड़ देने के लिए कहते हैं। क्योंकि इस नादानीपूर्ण खेल में वास्तविकताएँ नहीं होती हैं। जैसे बच्चे इस खेल को खेलते हैं और जब बच्चा सयाना हो जाता है तो उसको जीवन के वास्तविक खेल समझ में आने लगते हैं। तब गुड़िया-गुड़वा के वे खेल उसे भी मज़ाक और नादानी का खेल लगने लगता है। बच्चा सयाना होकर गुड़वा-गुड़िया के खेल को बुद्धिहीनता और बचपने का खेल मानने लगता है क्योंकि उसकी समझ में आ जाता है कि वह खेल वास्तविक और सच नहीं था। इस बात को बोध के स्तर पर समझना आवश्यक है।
धरमदास के वंश का खेल गुड़वा-गुड़िया से भी ज्यादा बुद्धिहीनता और नादानी-भरे कौतुक का खेल है। इस खेल के साथ किसी भी उम्र, किसी भी काल में और किसी भी समय कोई समझ नहीं बनती है। वंश का खेल मोह-वासना का खेल है। मोह-वासना के खेल से बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी हार जाते हैं। धरमदास तो कामी, लोभी व्यक्ति है। धरमदास को इस संसार से उबरना नामुमकिन काम लगता है। क्योंकि धरमदास इतना तुच्छ गलीज़ कमीन व्यक्ति है और यह व्यक्ति पारिवारिक मोह-लिप्सा में इतने गहरे तक जबरदस्त जकड़ा हुआ है कि किसी भी जन्म में वह उससे उबर नहीं सकते। कबीर साहब का उपदेश है- कहै कबीर तेहि उबरे, जाहि न मोह समाय। धरमदास दूसरों को पान-परवाना देकर सत्यलोक भेजने का मुलम्मा देते रहें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस ठगी और धोखाधड़ी से लोग अब अवगत हो गये हैं। कबीरवाणी और कबीरपंथ हीरा, मोती के समान अमूल्य है। धरमदास गिलट पर सोने का पानी चढ़ाकर कबतक प्रस्तुत करते रहेंगे? एक-न-एक दिन तो गिलट पर से पानी उतर ही जायेगा।
धरमदास की वंशावली गिलट धातु पर सोने का पानी चढ़ायी हुई है। धरमदास के पास मोह के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दीखता है। मोह भी इतना संकीर्ण है कि अपनी वंशावली को ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे इसी नरक में देखना चाहते हैं। कबीर साहब कहते हैं कि यह संसार दुःख का सागर है। दुःख का सागर यानी नरक की खानि। मगर धरमदास की संकीर्णता है कि वे दूसरे को पान-परवाना देकर सत्यलोक भेजने का ठेका तो लेते हैं, मगर अपने वंशों को नरक में ही बिल-बिलाने के लिए कबीर साहब से आशीर्वाद माँगते हैं।
गुरुनानकदेवजी के उपदेश की एक मिसाल यहाँ पर जाननी आवश्यक है। गुरुजी एक बार किसी गाँव में उपदेश कर रहे थे। गाँव वालों ने गुरुजी की खूब सेवा-भक्ति की। गुरुनानकदेवजी जाते समय गाँव वालों को सब कुछ सर्वनाश हो जाने का आशीर्वाद दे गये। फिर, गुरुजी दूसरे गाँव में गये, वहाँ के लोगों ने उनके साथ बड़ा ही अपमानपूर्ण बर्ताव किया और बदसलूकी की। मगर उस गाँव वालों को गुरुजी ने खूब फलने- एक भक्त ने पूछा- गुरुजी, जिस गाँव वाले ने आपकी भरपूर सेवा-भक्ति की, उस गाँव वालों को तो आपने सर्वनाश हो जाने का आशीर्वाद दिया; मगर जिस गाँव वालों ने आपको अपमानित किया, उस गाँव वालों को आपने फलने-फूलने का आशीर्वाद दिया। गुरुजी ने भक्त को समझाया कि यह संसार दुःख का सागर है। इसलिए जिस गाँव वालों ने सेवा-भक्ति की, उनलोगों को दुःख की पीड़ा से सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाने का मैंने आशीर्वाद दिया और जिन लोगों ने अपमान किया, उन लोगों को ऐसा आशीर्वाद मैंने इसलिए दिया ताकि वे जन्म-जन्म तक इस दुःखमय संसार में आते और जाते रहें। गुरुजी की इस मिसाल में मुक्ति और बन्धन का उपदेश है। संतों का तो काम ही होता है कि वे जीवों को बंधन से मुक्तकर सुखसागर की प्राप्ति करायें। बार-बार जन्म लेना और मरना दुःख का कारण है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist