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वीरभाण और उनका राजरूपक- Veerbhaan and His Royal Metaphor

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Specifications
Publisher: K.L. Pachori Prakashan, Ghaziabad
Author Kamlesh Nagar
Language: Hindi
Pages: 153
Cover: HARDCOVER
9.00 X 6.00 inch
Weight 280 gm
Edition: 2000
HBO646
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Book Description
पुस्तक परिचय
वीरभूमि राजस्थान ने अनेक वीरों तथा साहित्यकारों को जन्म दिया है। जिस प्रकार वीरों ने अपने शौर्य तथा पराक्रम से राजस्थानी मान मर्यादा की रक्षा की है, उसी प्रकार वहाँ के साहित्यकारों द्वारा इन वीरों के यश को अमर बनाये रखने के उद्देश्य से असंख्य ग्रन्थ रत्नों की रचना की गयी है। कलम तथा तलवार दोनों के धनी इन चारण कवियों ने अपने साहित्य में वीरत्व की जीवन्त झाँकी के दर्शन कराये हैं। ऐसे ही चारण कवियों में एक जगमगाता नक्षत्र है, रतनू वीरभाण का। वीरभाण का 'राजरूपक' एक ऐसा ग्रन्थ है जो तत्कालीन राजस्थान की सामाजिक राजनैतिक तथा ऐतिहासिक स्थिति का प्रतिविम्व है। वीरभाण एक स्वाभिमानी तथा दृढ़ चरित्र वाला व्यक्ति था। राजदरबार में रहते हुए भी दरवारी कवियों की कमजोरियों से वे मुक्त थे, कीचड़ में रहनेवाले कमल की तरह। महाराज अभयसिंह के ये आश्रित कवि थे परन्तु उनके कहने पर भी अपने ग्रन्थ को संक्षिप्त करना अस्वीकार कर दिया, फिर भले पुरस्कार तथा सम्मान से वंचित ही क्यों न रह जाना पड़ा हो। राजसम्मान, विपुल ऐश्वर्य तथा राज्याश्रय सव की उन्होंने अपने स्वाभिमान के ऊपर भेंट चढ़ा दी। साहित्य के इतिहास में ऐसे प्रबुद्ध साहित्यकारों के उदाहरण विरल ही हैं जिन्होंने अपने अन्तर की पुकार से बढ़कर किसी अन्य को नहीं माना।

लेखक परिचय
डॉ. कमलेश नागर जन्म : 2 अक्टूबर 1944 को अलीगढ़ में। पिता (स्व.) श्री हरस्वरूप नागर शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी, संस्कृत), आगरा कॉलेज (आगरा वि.वि.), आगरा शोध: स्व. डॉ. टीका सिंह तोमर के निर्देशन में 1969 शोध कार्य 'वीरभाण व्यक्तित्व एवं कृतित्व' अध्यापन: 1971 से दयालबाग शिक्षण संस्थान (डीम्ड यूनिवर्सिटी)- दयालबाग, आगरा। वर्तमान में हिन्दी विभाग की अध्यक्ष । लम्बे समय से नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा की आजीवन सदस्य, वर्तमान में उपसभापति । 'भारतीय हिन्दी परिषद' की आजीवन सदस्या तथा 4 वर्षों तक कार्यकारिणी की सदस्या । अखिलभारतीय महिला परिषद जैसी विविध सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय सहयोग। अनेक साहित्यिक राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठियों में शोध-पत्र प्रस्तुत किये हैं। आकाशवाणी आगरा से समय-समय पर साहित्यिक वार्ताओं का प्रसारण। र्डी.ई. आई में शोध निर्देशन तथा विविध विश्वविद्यालयों के शोध प्रबन्धों की परीक्षक । पता: डॉ. कमलेश नागर, 28/165 गोकुल पुरा, आगर-28/2002

भूमिका
राजस्थान के डिगंल साहित्य में वीर काव्यों की अत्यन्त समृद्ध परम्परा रही है। चारण कवियों ने अपनी काव्य प्रतिभा एवं सतत् साधना के द्वारा इस काव्य धारा में योग देकर उत्कृष्ट काव्यग्रन्थों का प्रणयन किया है। वहाँ के वीरों ने जिस प्रकार अपने शौर्य तथा पराक्रम से राजस्थानी मान-मर्यादा तथा प्रतिष्ठा की रक्षा की है उसी प्रकार वहाँ के साहित्यकारों द्वारा उन वीरों के यश को अमर बनाये रखने के उद्देश्य से असंख्य ग्रन्च रत्नों की रचना की गयी है। कलम और तलवार दोनों के धनी इन चारण कवियों ने अपने साहित्य में वीरत्व की जीवन्त झाँकी के दर्शन कराये हैं। चारणों द्वारा रचित प्रचुर साहित्य अभी तक अन्धकार में पड़ा हुआ है। आज भी अनुपलब्ध साहित्य को खोजने तथा प्रकाशित साहित्य का वैज्ञानिक अध्ययन करने की आवश्यकता बनी हुई है। इन ग्रन्थों में वहाँ के इतिहास तथा संस्कृति का भी विशाल सागर लहरा रहा है। रतनू वीरभाण का नाम ऐसे ही कवियों की सूची में आता है। वह अपने समय के महाकवि, कुशल राजनीतिज्ञ तथा इतिहास के मर्मज्ञ थे। आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की जिनमें से राजरूपक अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह राजस्थानी का उच्च कोटि का काव्यग्रन्थ है। वीरभाण ने अपने आश्रयदाता जोधपुराधीश अभयसिंह के युद्धों का आँखों देखा विवरण चित्रित किया है। साथ ही उनके पूर्वजों महाराज जसवन्तसिंह तथा अजीतसिंह आदि से सम्बन्धित घटनाओं का भी वर्णन किया है।

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