जीत का नजरिया दुरुस्त करने का अर्थ, कर्म करने के नजरिए को दुरुस्त करना होता है। अगर कर्म करने का नजरिया दुरुस्त हो गया अथवा हम चुस्ती-फुर्ती से अपने कार्यों को अंजाम देने में तत्पर रहने लगे तो जीत या विजय हमसे कभी भी दूर नहीं रह पाएगी।
जीतता अंत में वही है जो अपनी हार नहीं मानता है। कर्मपथ पर चलते हुए अगर आप पथ की मुश्किलों से घबरा गए और थककर अगर आपने अपने मन में अपनी हार मान ली तो कोई फिर कितना ही आपका साहस, हिम्मत, हौसला बढ़ाने की कोशिश करे, आप विजय का हौसला नहीं रख पाएँगे। किसी संत ने कहा है कि आदमी जब अपने मन में समझ लेता है कि वह हार गया है तो वह सचमुच ही अपने ध्येय से हार जाता है।
दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका हल इंसान न निकाल सके। बस समस्या या कठिनाई को सुलझाने के लिए सही (समर्थ) चिंतन की आवश्यकता होती है। सही चिंतन से हर मुश्किल का हल निकाला जा सकता है। अगर आपने अपने कर्मपथ की मुश्किलों का हल निकाल लिया तो वे मुश्किलें फिर कभी आपको परेशान नहीं करेंगी। आपको उन मुश्किलों का हल निकालना आ जाएगा तो आप पथ की बाधाओं से घबराएँगे नहीं और हर हाल में अपने कदम लक्ष्य की ओर बढ़ाते रहेंगे।
जन्म-तिथि: 30 जून, सन् 1971 ई. ।
जन्म-स्थान : अहीर पाड़ा, सन्तर रोड, धौलपुर (राज.)।
वर्तमान निवास : कुवेदान साहब का बाड़ा, कायस्थपाड़ा, धौलपुर (राज.)।
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी), एम. एस. सी. (प्राणिशास्त्र), पी-एच. डी. (क. मा. मुंशी हिन्दी भाषा विज्ञान विद्यापीठ, आगरा विश्व-विद्यालय) ।
प्रकाशित पुस्तकें : रानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आजाद, क्रांतिदूत बिरसा मुण्डा, रानी चेनम्मा तथा मिर्जा गालिब सहित तीन सौ से ज्यादा बड़ी पुस्तकें एवं दो सौ पचास बालोपयोगी पुस्तकें प्रकाशित ।
सम्प्रति : राजयोग प्रशिक्षण एवं सतत लेखन कार्य।
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