भारतीय नृत्यों में हमें योग से संबंधित क्रियाएं देखने को मिलती है। कत्थक नृत्य की मुख्य मुद्रा अराल मुद्रा योग की ज्ञान मुद्रा के समान है जो मोक्ष प्राप्ति का साधन मानी गई है। इसी प्रकार सभी शास्त्रीय नृत्यों में विविध भाव, कथाएं व स्वरूप प्रस्तुत किए जाते हैं जिनमें अनेक मुद्राओं एवं भाव-भगिमाओं का प्रयोग होता है। प्राचीन काल से ही भारतीय नृत्य मंदिरों में देवस्तुति व भक्ति के स्त्रोत रहे हैं जो सीधे-सीधे नृत्य को योग से जोड़ते है।
भरतमुनि कृत्त नाट्यशास्त्र ग्रंथ में 108 नृत्तकरण (मुद्राए) वर्णित हैं जिनका प्रयोग भरतनाट्यम और ओड़िसी नृत्य में बहुधा देखने को मिलता है। शास्त्रों में वर्णित है कि अति प्राचीन काल में जब ऋषि-मुनि तपस्या व साधना में लीन रहते थे तब धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञ कर्म व अपनी ऋचाओं के गान में नृत्त करणों की कुछ विशिष्ट क्रियाओं का प्रयोग भी करते थे। चूंकि ऐसा माना जाता था कि इन नृत्त करणों के प्रयोग से उनका धार्मिक अनुष्ठान अधिक सुदृढ़ होगा व पूर्णता को प्राप्त होगा।
भारतीय नृत्य-परंपरा में भगवान शंकर ताण्डव नृत्य के अधिष्ठाता देव माने गए हैं। देवी पार्वती लास्य नृत्य की जननी मानी गई है। भगवान श्री कृष्ण रास नृत्य (नटवरी अंग) के अधिष्ठाता देव सर्वजगत में लोकप्रिय हैं। इन सभी देवी-देवताओं ने नृत्य को अपने जीवन का अभिन्न अंग माना। इसी ईश्वर की प्राप्ति हेतु अनेक तपस्वियों, त्रऋषियों, मुनियों व राक्षसों ने योग साधना और घोर तप किया व कठोर साधना से ईश्वर को प्राप्त करके मनचाहे वरदान प्राप्त किए। श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित 18 अध्यायों को क्रमशः सांख्ययोग, विषादयोग, कर्मय भारतीय नृत्य-परंपरा में भगवान शंकर ताण्डव नृत्य के अधिष्ठाता देव माने गए हैं। देवी पार्वती लास्य नृत्य की जननी मानी गई है। भगवान श्री कृष्ण रास नृत्य (नटवरी अंग) के अधिष्ठाता देव सर्वजगत में लोकप्रिय हैं। इन सभी देवी-देवताओं ने नृत्य को अपने जीवन का अभिन्न अंग माना। इसी ईश्वर की प्राप्ति हेतु अनेक तपस्वियों, त्रऋषियों, मुनियों व राक्षसों ने योग साधना और घोर तप किया व कठोर साधना से ईश्वर को प्राप्त करके मनचाहे वरदान प्राप्त किए। श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित 18 अध्यायों को क्रमशः सांख्ययोग, विषादयोग, कर्मयोग इत्यादि नाम दिए गए हैं।
आज बदलती विचारधाराओं के युग में सच्चे योगियों, सच्चे नर्तकों की अहम आवष्यकता है। योग जो कि हमारी भारतीय संस्कृति का अनमोल उपहार है, उसके महत्त्व व लाभों से परिचित होते हुए भी हम योग से होने वाले शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आत्मिक लाभों से वंचित हो रहे हैं। इसका कारण यह है कि हम अपनी भारतीय सभ्यता का ठीक वैसे ही सम्मान नहीं करते जैसे कलयुग के समय में युवावर्ग अपने माता-पिता की कई लाभपूर्ण बातों को अनसुना व अनदेखा कर देते हैं। शास्त्रीय नृत्यों के संबंध 1 में भी वह उत्साह एवं जोश आज की पीढ़ी में नहीं है जो पाश्चात्य नृत्यों के प्रति है। एकमात्र कारण यही है कि हम अपनी नींव को स्वयं ही कच्चा कर रहे हैं। हम जानबूझकर भारतीय नृत्य एवं योग जैसे क्षेत्रों में रूचि न लेकर बाहरी दिखावटीपन में ज्यादा विश्वास रखते हैं या दूसरे शब्दों में कहें कि हम भारतीय विशिष्टताओं के प्रति लापरवाह हो रहे हैं।
योगाभ्यास व प्राणायाम साधक मनुश्य को ईश्वर से तो जोड़ता ही है तथा साथ ही नर्तक यदि नृत्य के साथ योगाभ्यास भी करे तो उसे अगणित लाभ होते हैं। वैसे भी नृत्य, योग अपने आप में विस्तृत विषय हैं, चिंतन से भरपूर हैं, भारतीय संस्कृति के मूल परिचायक हैं और दोनों का मुख्य लक्ष्य आत्मिक शुद्धि एवं ईष्वर प्राप्ति है।
नृत्य एवं योग के मध्य एक अहम संबंध स्थापित करती हैं-मुद्राएं। हाथों की अलग-अलग अंगुलियों को एक-दूसरे से परस्पर जोड़ने पर जो विशेष आकृतियां बनती हैं नृत्य में वे सांकेतिक क्रियाओं के रूप में या भावाभिव्यक्ति में प्रयोग की जाती हैं। योग में यही मुद्राएं एक विशेष स्थिति जिसे 'सुखासन' या 'पद्मासन' कहते हैं आदि ध्यान व प्राणायाम अवस्था में शरीर व मन को स्थिर करने के उद्देश्य से की जाती हैं। योग व नृत्य में प्रयुक्त इन मुद्राओं में बहुत सी साम्यताएं हैं। कुछ मुद्राएं तो समान हैं, कुछ के नाम अलग-अलग हैं किंतु करने का तरीका एक सा है। नृत्य में कुछ अभ्यास व क्रियाएँ ऐसी भी हैं जिनका प्रयोग नृत्यकार भाव सृष्टि हेतु करता है किंतु योग में इन मुद्राओं व क्रियाओं को नाम दिया गया है। यौगिक मुद्राओं का गहनता से अध्ययन व शोध करने के उपरांत ये तथ्य सामने आते हैं कि योग की बहुत सी मुद्राएं नृत्य में प्रयुक्त होती हैं जो योग व नृत्य के मध्य महत्वपूर्ण संबंध 1 उजागर करती है। योग व नृत्य के मूल अध्ययन के उपरांत इस पुस्तक मे मुद्राओं के ऊपर विशेष शोध प्रस्तुत किया गया है। विविध अभ्यासों व गुणीजनों से प्राप्त इस ज्ञान को योग व कत्थक नृत्य के विशेष संदर्भ में आप सभी से सांझा कर रही हूँ।
Hindu (हिंदू धर्म) (12744)
Tantra (तन्त्र) (980)
Vedas (वेद) (688)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1960)
Chaukhamba | चौखंबा (3183)
Jyotish (ज्योतिष) (1475)
Yoga (योग) (1114)
Ramayana (रामायण) (1341)
Gita Press (गीता प्रेस) (727)
Sahitya (साहित्य) (23378)
History (इतिहास) (8580)
Philosophy (दर्शन) (3405)
Santvani (सन्त वाणी) (2575)
Vedanta (वेदांत) (118)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist