| Specifications |
| Publisher: KITAB MAHAL | |
| Author Mukesh Kumar Kaushal | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 106 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 110 gm | |
| Edition: 2021 | |
| ISBN: 9789387253933 | |
| HBQ240 |
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महर्षि पतंजलि कृत योगदर्शन योग की दार्शनिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने वाला एक महत्वपूर्ण शास्त्र है। योगदर्शन का स्वरूप सैद्धान्तिक और क्रियात्मक दोंनों है। इस ग्रंथ की ज्ञानमीमांसा और तत्वमीमांसा पर सांख्य दर्शन का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। योगदर्शन में कुल चार पाद (अध्याय) है- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद। इन चार पादों के सभी सूत्रों को मिलाकर सूत्रों की संख्या 195 है। सूत्र संक्षिप्त परन्तु अत्यंत गूढ़ार्थ पूर्ण हैं।
प्रस्तुत पुस्तक वस्तुनिष्ठ योग दर्शन योगदर्शन पर आधारित एक ऐसी पुस्तक है जिसमें योगदर्शन के चार पादों को आधार मानकर प्रत्येक पाद से अनेक प्रश्नों को तैयार किया गया है और प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प देकर पुस्तक को वस्तुनिष्ठ रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया है। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए प्रत्येक पाद का सार तथा प्रत्येक पाद के सभी सूत्रों का क्रमवार विषय वर्णन पुस्तक में दे दिया गया है ताकि योगदर्शन को आसानी से समझा जा सके। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यू. जी. सी. ने योग के अनेक ग्रंथों को नेट (योग) की परीक्षा में सम्मिलित किया है, जिनमें से योगदर्शन भी एक है। इस दर्शन से अनेक प्रश्न नेट (योग) की परीक्षा में पूछे जाते है इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने इस पुस्तक की रचना की ताकि सभी विद्यार्थियों को योग विषय की सभी परीक्षाओं में सफलता अर्जित हो सके। यदि विद्यार्थियों को इस पुस्तक से ज़रा भी लाभ प्राप्त हो सका तो में मानूंगा कि मेरा यह लघु प्रयास सार्थक सिद्ध हुआ।
मुझे आशा है कि यह पुस्तक योग विषय में रुचि रखने वाले सभी पाठको व विद्यार्थियों के लिए रुचिकर व लाभप्रद सिद्ध होगी। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए पुस्तक की भाषा अत्यन्त सरल रखी गई है ताकि सूत्रों के मूल भाव सुस्पष्ट हो सकें।
अंत में, मैं उन सभी महानुभावों को साधुवाद देना अपना कर्तव्य समझता हूँ जिन्होंने मुझे इस पुस्तक के लेखन कार्य में न केवल सहयोग किया बल्कि अपने बहुमूल्य सुझावों से भी अवगत कराया।
किताब महल के अधिष्ठाता श्री राघवेन्द्र अग्रवाल जी का भी में अत्यन्त आभारी हूँ जिन्होंने अत्यंत अल्पावधि में पुस्तक को सुन्दर स्वरूप में प्रस्तुत करके आपके हाथों में सौंप दिया।
संभव है कि पुस्तक में कुछ अशुद्धियां रह गई हों अतः आप सभी पाठकों से अनुरोध है कि उन अशुद्धियों से मुझे अवगत कराने की कृपा करें ताकि भविष्य में उन्हें सुधारा जा सके। इसके लिए आपके सुझाव सदैव आमंत्रित हैं।
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