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योग: समग्र जीवन की ओर- Yoga: Towards a Holistic Life

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Specifications
Publisher: Madhulika Prakashan, Allahabad
Author Kaushal Kumar
Language: Hindi
Pages: 194 (With B/W Illustrations)
Cover: HARDCOVER
8.5x5.5 inch
Weight 280 gm
Edition: 2018
ISBN: 9788188985173
HBY051
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Book Description

भूमिका

योग इस संसार की सबसे प्राचीनतम विद्याओं में से एक है। यह विद्या मनुष्य के सभी कष्टों का निदान कर उसका उच्चतम विकास करती है। यह जीवन की एक सहज, सरल तथा निरापद जीवन-शैली है। वस्तुतः यह मनुष्य की अन्तर्यात्रा का विज्ञान है। इस संसार में योग ही एकमात्र ऐसी विद्या है, जो हमें स्वयं का बोध कराती है, अन्य सारी विद्याएँ तो बाहरी दुनिया का ज्ञान कराती हैं।

अधिक सांसारिक ज्ञान हमें धन, पद, प्रतिष्ठा, स्त्री तथा पुत्र आदि तो अवश्य दे सकता है, किन्तु शांति, सन्तुष्टि तथा आत्म-बोध तो योग ही दे सकता है। जिसने सब कुछ जान लिया, किन्तु स्वयं को नहीं जाना। वह उस गधे के समान है, जिसने अपनी पीठ पर किताबों का गट्‌ठर तो रख लिया, किन्तु किताबों के ज्ञान से जीवन भर अछूता रहा। हम अपनी आँखों से करोड़ों किलोमीटर दूर तारों को तो देख लेते हैं, किन्तु अपनी ही आँख में लगे काजल को नहीं देख पाते हैं। हम दूसरों की गलती तो बहुत जल्दी देख लेते हैं, किन्तु स्वयं अपनी गलतियों के प्रति जीवनभर अनभिज्ञ बने रहते हैं। यही हमारे दुःखों का मूल कारण है।

इस संसार का अपना नियम है। इस नियम पर हमारा कोई वश नहीं हो सकता है। संसार को किसी भी प्राणी या वस्तु पर हम अपना नियम नहीं चला सकते हैं। सूरज, चाँद, रात-दिन, जन्म-मृत्यु, पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन या पड़ोसी आदि किसी पर भी हम मनचाहा नियंत्रण नहीं स्थापित कर सकते हैं, किन्तु जीवनभर मृत्यु को टालने, बाल को काला रखने, जवान बने रहने, बुढ़ापा टालने आदि का प्रयत्न करते रहते हैं। दूसरी तरफ, हम अपने मन जिस पर हम पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं, पर नियंत्रण करने का जीवनभर प्रयास नहीं करते हैं। यही हमारे जीवन की विडम्बना है।

योग अपने मूल अर्थ से भटकता जा रहा है। आज योग का अर्थ व्यायाम करना, श्वास की फूं-फां कर लेना, शरीर को तोड़ना-मरोड़ना, मांसल बनाना, वेश बदलना, जिमनास्टिक करना तथा दाढ़ी-मूँछ बढ़ा लेना है। जो अपने इन्द्रियों एवं मन को जितना ही ज्यादा असंयमित तथा असंतुलित कर लेता है वह उतना ही बड़ा योगी है। जलती आग में बैठना, पानी पर चलना, आसमान में उड़ना, दूसरे के मन की बात जान लेना, मुर्दे को जिन्दा कर देना, आशीर्वाद या श्राप देना आदि जैसे चमत्कारों के साथ योग को जोड़ा जाता है। आज के अधिकांश योगी, संत तथा महात्मा अपने को किसी भगवान या महापुरुष का अवतार बताते हैं। जिसके पास जितने ही अधिक शिष्य, मठ, धन, प्रतिष्ठा तथा राजनीतिक रसूख हैं वह उतना ही बड़ा योगी है। संक्षेप में, योग के नाम पर जो जितना काल्पनिक, अतार्किक तथा बे-सिर-पैर की बात कर लेता है, वह उतना ही बड़ा योगी या महात्मा माना जाता है।

वस्तुतः योग का अर्थ मन का नियमन तथा नियंत्रण है। अपने मन का बादशाह बन जाना ही योग है। मनोविजय से मनुष्य को अपने दुःखों पर भी विजय मिल जाती है। योग मन पर विजय प्राप्त करने का सरल तथा सहज मार्ग प्रस्तुत करता है। इसीलिए योग को मध्यम मार्ग, संतुलित जीवन-शैली आदि के रूप में जाना जाता है। आपके समक्ष प्रस्तुत यह पुस्तक योग को सही अर्थों में आप तक पहुँचाने का एक छोटा प्रयास है। इस पुस्तक में महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग का विस्तृत वर्णन करने की कोशिश के साथ हठयोग पर भी चर्चा की गई है। विषय को विज्ञान सम्मत बनाने के लिए शरीर-विज्ञान भी इसमें जोड़ा गया है। आसन तथा प्राणायाम को साधक की साधना का एक अंग मानने के लिए शरीर और मन के अनेक रोगों, मल तथा विकारों को दूर एवं निष्कासित करने के रूप में भी यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

इस पुस्तक के लेखन में जिन अनेक महापुरुषों द्वारा रचित योग की पुस्तकों से सहयोग लिया गया है, हम उनके प्रति हृदय से ऋणी हैं। मेरे प्रिय मित्र योगाचार्य ओम जी ने आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्रा आदि के चित्र उपलब्ध कराया है तथा समय-समय पर अनेक अमूल्य सुझाव दिये हैं, जिसके लिए हम आपके विशेष आभारी हैं। छायाकार श्री लाल सिंह जी ने बहुत ही कम समय में चित्रों को उपलब्ध करवाया, इसके लिए आपका साधुवाद। श्री ज्ञानेन्द्र पाण्डेय जी ने इस पुस्तक में अपना तकनीकी सहयोग देकर मुझे कृतार्थ किया है।

इस पुस्तक को बहुत कम समय में तथा विशिष्टता के साथ प्रकाशित करने का पूरा श्रेय श्री सर्वेश शुक्ला जी को है, जिसके लिए हम आपके आजीवन ऋणी हैं। इनके अथक प्रयास से ही यह पुस्तक आपके सामने इस रूप में आ सकी है। आपके स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की विशेष कामना। अंत में, इस पुस्तक को अपने सुझावों द्वारा पूर्णता प्रदान करने के मेरे प्रयासों में मेरी सहधर्मिणी श्रीमती पल्लवी शुक्ला का विशेष योगदान रहा है। इस हेतु इनका विशेष आभार। यदि यह पुस्तक योग को अपने वास्तविक रूप में आप तक पहुँचाने के मेरे प्रयास में थोड़ा भी सहायक हुई, तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समझेंगा। किसी भी प्रकार की भाषागत या विषयगत त्रुटियों के लिए विचारवान साधकों का सुझाव मेरे लिए बहुत उपयोगी होगा। कृपया इनका उल्लेख कर अगले संस्करण में इनको दूर करने में मेरा मार्ग प्रशस्त करें।

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