| Specifications |
| Publisher: Harper Collins Publishers | |
| Author Amish Tripathi, Bhavna Roy | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 218 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8x5 inch | |
| Weight 170 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789362135315 | |
| HBG120 |
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ये आभार 2020 में तब हुई थी। मैं धर्म का लिखा गया था, जब यह किताब प्रकाशित ये संस्करण छापने वाली टीम का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। हार्पर कॉलिंस की टीमः स्वाति, शबनम, आकृति, गोकुल, विकास, राहुल, पॉलोमी और उदयन के साथ उनका नेतृत्व करने वाले प्रतिभाशाली अनंत। इन सभी के साथ शुरू हुए इस सफर के प्रति मैं बहुत उत्साहित हूँ। स्वर्गीय हिमांशु रॉयः भावना के पति, अमीश के बहनोई; दोनों के मार्गदर्शक। स्वर्गीय डॉ. मनोज व्यासः अमीश के श्वसुर, भावना के अंकल; दोनों के लिए ज्ञान का स्रोत। इनका गौरव, गरिमा और शिष्टता हमें निरंतर प्रेरित करते हैं।
के दौरान हम दोनों भाई-बहन को एक अद्भुत सुविधा बड़े होल का दौरान दो दुनियाओं में डूबे हुए थे। पहली थी भारत, यह पवित्र-पावन धरती जिसकी प्राचीन जड़ें गहरी पैठी हुई हैं और जिससे हम प्रेरणा पाते हैं। हमारा लालन- पालन एक ठेठ पारंपरिक परिवार में हुआ था जो हमारी संस्कृति, धर्म (मुख्यतः हिंदू धर्म, मगर बौद्ध, जैन, और सिख धर्म भी), शास्त्रों और रीति-रिवाजों में रचा-बसा था। हमारे दादा पंडित बाबूलाल सुंदरलाल त्रिपाठी संस्कृत के विद्वान थे जो काशी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित और फ़िज़िक्स पढ़ाते थे। हमारी नानी श्रीमती शंकर देवी मिश्रा ग्वालियर में शिक्षिका थीं और शास्त्रों और परंपरा की विद्वान थीं। इन दोनों असाधारण व्यक्तियों द्वारा छोड़ी गहरी छाप हमारे परिवार को आज भी प्रभावित करती है। वे हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखते हैं। एक प्रभाव और भी था, इंडिया का, उस देश का जो दुनिया के, आधुनिकता और पाश्चात्य शैली के उदारवाद के साथ चलने की कोशिश कर रहा था, और इस कोशिश में वह अक्सर यूके, और बाद में यूएसए की नक़ल करता था। हमारे माता-पिता हिंदीभाषी वातावरण में पले-बढ़े थे, घर पर भी और स्कूल में भी। और उन्होंने इसका खामियाज़ा भी भुगता। अंग्रेज़ी में दक्षता की कमी अच्छी नौकरियां पाने और कैरियर में आगे बढ़ने की राह में रोड़ा बनती थी, ख़ासकर उस अर्थव्यवस्था में जिसे समाजवादी नीतियों ने चौपट कर रखा था। हमारे माता-पिता ने तय किया कि उनके बच्चे वो नहीं भुगतेंगे जो उन्होंने भुगता था। हम चार भाई-बहन हैं, और हम सबको उस समय के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों में भेज दिया गया। ये काफ़ी मुश्किल था, क्योंकि ये उनकी सामाजिक और आर्थिक हैसियत से परे था। मगर, हमारी मां दृढ़ थीं, जैसा कि वे बताती थीं, उन्हें लगता था उनके बच्चे अंग्रेज़ीवालों के आसपास बड़े हों ताकि हमें कभी उनसे दबना न पड़े। यह उनके लिए ख़ासतौर से महत्वपूर्ण था कि उनके बच्चे इस नई दुनिया में सफल हों।
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