वेदोद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेद को सभी सत्य विद्याओं का आदिस्रोत माना है. वेद वह अद्भुत व अलौकिक ज्ञान है जो परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में दिया। आत्मा, परमात्मा, सम्पूर्ण प्रकृति, ज्ञान-विज्ञान आदि सभी विषय सूत्र व बीज रूप में वेदों में विद्यमान हैं. शोध अन्वेषण व साधना से ही वह ज्ञान उद्घाटित हो पाता है। श्रद्धेय मीमांसक जी वेदवेत्ता व वेद रहस्य के प्रवीण शोधक हैं। प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा उन्होंने वैदिक संस्कृति के चिन्तन की श्रीवृद्धि की है और वेद अनुरागी जनों, शोधकर्ताओं व विद्वानों को नई दिशा व नवीन आलोक प्रदान किया है।
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