जगद्गुरु श्री श्री श्री भारती तीर्थ महाराज जी और जगद्गुरु श्री श्री श्री विधुशेखर भारती महाराज जी के सौम्य आशीर्वाद के साथ, हमारे गुरु की अद्वितीय करुणा और परोपकार को दर्शाने वाला भक्तों के चमत्कारी व्यक्तिगत अनुभवों का एक संग्रह अप्रैल 2011 मे परम पावन जगद्गुरु श्री श्री श्री भारती तीर्थ महाराज जी के 60वें वर्धन्ती समारोह के अवसर पर 'गुरु महिमाई' शीर्षक के तहत प्रकाशित हुआ। भक्तों द्वारा सुनाई गई उल्लेखनीय घटनाओं का यह संग्रह पहली बार तमिल में प्रकाशित हुआ था। महाराज जी की कृपा से अब तक इस पुस्तक की लगभग 6000 प्रतियां बिक चुकी हैं। जो लोग तमिल नहीं जानते हैं, उन लोगों की सुविधा के लिए श्रीमती हिरणमयी सुरेश (अमेरिका) द्वारा पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था और अक्टूबर 2012 में 'ग्लोरी ऑफ द गुरु' के नाम और शीर्षक के तहत जारी किया गया था। कई भक्त जो तमिल और अंग्रेजी नहीं जानते हैं, उन्होंने इन चमत्कारों को भारतीय घरों में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा - हिंदी में पढ़ने की गहरी रुचि व्यक्त की है। अपने सभी साथी भक्तों के साथ इन दिव्य अनुभवों को साझा करने की इच्छा से प्रेरित होकर, हम अपने प्रिय गुरुओं के चरण कमलों में हिंदी में अनुवादित 'गुरु माहिमा' प्रस्तुत करते हैं।
भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है, 'उन लोगों के लिए जो मेरी शरण लेते हैं और मेरे सिवा किसी का विचार नहीं करते, मैं उनकी जरूरत की हर चीज देने और दी गई हर चीज को संरक्षित करने की जिम्मेदारी लेता हूं।' परम पूर्ण भगवान जो अजन्मा, एवं निर्विकार हैं, अपने भक्तों को मुक्ति दिलाने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। श्रीमद्भागवत, भक्त विजय, महाभारत जैसे ग्रंथ अनगिनत चमत्कारों को बताते हैं जो भगवान ने अपने भक्तों के जीवन में किए हैं। वे उनके दिव्य गुणो के भंडार हैं। वह उस रूप में प्रकट होते हैं जिसमे भक्त उन्हें अनुभव कर सके (भक्त पराधीन), वह दींन भक्तों के सरंक्षक (दीन दयाल) है, वह अपने भक्तों से स्नेह (भक्त वत्सल) करने वाले हैं। सर्वशक्तिमान भगवान, जिन्होंने गीता में गुरु के रूप में अर्जुन का मार्गदर्शन किया, हमारे बीच जगद्गुरु श्री श्री श्री भारती तीर्थ महाराज जी के रूप में अवतरित हुए है।
श्रृंगेरी शंकराचार्यों की अटूट श्रृखंला के दीप्तिमान तारे हमारे गुरु ने हम पर अनगिनत आशीर्वाद बरसाए हैं। हमारे गुरु श्रृंगेरी शारदा पीठम में रहते हैं जो श्री आदिशंकर द्वारा स्थापित चार पीठों में से सबसे प्रमुख है। उन्होंने दुनिया के लाभ के लिए सौम्य कृपा की है। आदिशंकर श्री गुरु को 'अहेतुक दया संधू' अर्थात 'दया का असीमित सागर' कहते हैं, जिन्हें अपनी कृपा बरसाने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं होती है। इस तेजोमय सूर्य की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए किसी भी योग्यता की आवश्यकता नहीं है। केवल उन्हें पूरे दिल से समर्पण करना ही काफी है। उन की पवित्रता और उन की असीम दया की उदारता जाति, पंथ और धर्म के मतभेदों को पार है। पिछले लाखों जन्मों में हमारे नेक कर्मों के कारण हमें हमारे गुरु तक जाने का मौका मिला हैं। हम वास्तव में भाग्यशाली हैं।
हमारे जगद्गुरु श्री श्री श्री भारती तीर्थ महाराज जी दया का अथाह सागर है, जो अपने शिष्यों की हर प्रार्थना का उत्तर देते है। जो लोग उनका चिंतन करते हैं, वो कल्पतरु के वृक्ष के समान उनकी इच्छाओ को पूर्ण कर देते हैं। उनके शरणागत समग्र धन, धान्य, और आध्यात्मिक अस्तित्व को प्राप्त करते हैं। उनके आशीर्वाद ने अनगनित भक्तों की प्रगति, आध्यात्मिकता, मार्गदर्शन, भक्ति सेवा, धन और भौतिक सुख, वैवाहिक सद्भाव, कैरियर की सफलता जैसी कामनाओं को पूरा किया है। यह पुस्तक ऐसे ही भक्तो के कुछ उदाहरणों का संकलन है।
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