| Specifications |
| Publisher: Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow | |
| Author: शिवनाथ झारखण्डी (Sivanath Jharakhandi) | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 755 | |
| Cover: Paperback | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 780 gm | |
| Edition: 2018 | |
| ISBN: 9788189989545 | |
| NZA858 |
| Delivery and Return Policies |
| Ships in 1-3 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
प्रकाशकीय
प्रकृति की जिन घटनाओ से मनुष्य का पहला-पहला साक्षात्कार हुआ, उनमें या उनके प्रेरक तत्वों के रूप में खगोलीय घटनाओं का अत्यंत प्रमुख योगदान है। ग्रहों उपग्रहों, नक्षत्रों, नीहारिकाओं की स्थितियाँ और ब्रह्माण्ड की विभिन्न घटनाए निरतर उसकी उत्सुकता का केन्द्र रही हैं। अत्यत प्राचीन काल से विशेषकर भारतीयों ने इस दिशा में अत्यन्त सराहनीय कार्य किया है और ऋग्वेद तक में काल-गणना आदि के संकेत मिलते हैं। बाद में इसे ज्योतिष है रूप में अभिहित किया गया। आश्चर्यजनक रूप से आज भी जिन दो सर्वाधिक प्रमुख क्षेत्रों यथा कम्प्यूटर साइरन और अतरिक्ष विज्ञान आदि में भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है, वे दोनों ही काफी हद तक इसी काल-गणना और खगोलीय विज्ञान के ही विकसित रूप हैं।
देश के सुप्रसिद्ध खगोलविद् और ज्योतिषाचार्य स्वर्गीय श्रीशंकर बालकृष्ण दीक्षित की पुस्तक 'भारतीय ज्योतिष' इस सदर्भ में वर्तमान में लिखी गयी पुस्तको में अत्यन्त उल्लेखनीय रही है। इस क्षेत्र के विद्वान और जिज्ञासु पाठक इस रचना को मानक-रूप में स्वीकारते हैं। मूलत: 'भारतीय ज्योतिष' एक सदी पूर्व मराठी में लिखी गयी थी, जिसका यह हिन्दी अनुवाद ज्योतिषाचार्य-शिवनाथ झारखण्डी जी ने किया है। इसका पहला सस्करण पिछली सदी के छठे दशक में हिन्दी समिति प्रकाशन योजना में किया गया था। तब से इस अमूल्य धरोहर के तीन सस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इन्हे अत्यत सराहा गया, अपनाया गया और इसी के चलते यह चौथा सस्करण आपके हाथो में है। विद्वान लेखक और अनुवादक दोनो ही अब नही हैं, सो उनकी पुण्य स्मृति में नमन के साथ हम यह पुस्तक अपनी हिन्दी समिति प्रभाग की प्रकाशन योजना के अन्तर्गत पुन मुद्रित करते हुए विद्वान द्वय के प्रति श्रद्धाविनत हैं।
मूलत यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है -प्रथम भाग में वैदिककाल तथा वैदागकाल में ज्योतिष' के विकास की चर्चा है । द्वितीय भाग में सिद्धान्तकालीन ज्योतिषशास्त्र के इतिहास की चर्चा है। इनमें ज्योतिषशारत्र के सभी अगों पर गम्भीर विस्तारित और तार्किक जानकारियाँ पग-पग पर पाठक को गहरे प्रभावित एव प्रशिक्षित करती है । ज्योतिषशास्त्र के सहिता व जातक जैसे क्षेत्र ग्रहादि की ज्योतियों की गति पर अवलम्बित होते हैं। इसी तरह, अमुक समय पर अमुक ग्रह आकाश में अमुक स्थान पर रहेगा, यह बताना भी ज्योतिषशास्त्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। ऐसी अनेकानेक दुरूह जानकारियाँ यह ग्रथ हमें तत्काल देने में सक्षम है। विद्वान लेखक ने अपनी भूमिका में ज्योतिष के लगभग पाँच सौ प्राचीन ग्रथों के अध्ययन की चर्चा की है, दो हजार अन्य ग्रथों को न पढ़ पाने पर दु:ख भी व्यक्त किया है, इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कितने जिज्ञासु विनयी और प्रखर चिन्तक रहे होंगे और इसके चलते यह पुस्तक इतनी उपयोगी और सारगर्भित है। आशा है ऐसे असाधारण मनीषी के इस ग्रंथ रत्न का पूर्व तू की भाँति यह चतुर्थ सस्करण भी विद्वानों, छात्रों एव जिज्ञासु पाठकों के बीच समुचित रूप से समादृत होगा।





















Send as free online greeting card
Visual Search