भारतीय दर्शन में ज्ञान मीमांसा या ज्ञान विचार का एक प्रमुख स्थान है। प्रत्येक दर्शन संप्रदाय तत्त्व मीमांसा के साथ-साथ ज्ञान मीमांसा के महत्त्व को स्वीकार करता है। इसलिए ज्ञान मीमांसा के संदर्भ में भारतीय चिन्तकों ने विस्तार के साथ गंभीर विवेचन प्रस्तुत किया है। भारतीय दृष्टि से ज्ञान मीमांसा का विवेचन करते समय तर्क शास्त्र वं मनोविज्ञान से उसे पूरी तरह से अलग करना बहुत कठिन है। इन तीनों की विषय-सामग्री में इतनी समानता है कि एक का निरूपण करते समय दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करना बहुत सीमा तक अनिवार्य हो जाता है। पाश्चात्य दर्शन में तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान और ज्ञान मीमांसा को एक दूसरे से अलग करके विवेचन किया जाता है इसलिए वहाँ मीमांसा को तर्कशास्त्र और मनोविज्ञान से अलग करके समझाने का प्रयास किया जाता है किन्तु भारतीय दर्शन की दृष्टि से ज्ञान मीमांसा का क्षेत्र इतना व्यापक हो जाता है कि उसके अन्तर्गत मनोविज्ञान और तर्कशास्त्र भी आ जाते हैं।
भारतीय दर्शन की दृष्टि से ज्ञान मीमांसा पर विचार करते समय ज्ञान के स्वरूप, ज्ञान के प्रकार, ज्ञान के साधन, ज्ञान की प्रामाणिकता, ज्ञान के विषय, ज्ञान की उत्पत्ति की प्रक्रिया आदि प्रमुख पहलुओं पर विचार करना आवश्यक लगता है। उक्त पहलुओं पर लगभग सभी दार्शनिक संप्रदायों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से विचार किया है किन्तु इनके विचारों में समानता कम और भिन्नता अधिक है। इसलिए भारतीय दृष्टि से ज्ञान मीमांसा का विवेचन करते समय मुख्य दार्शनिक संप्रदायों के विशेष पक्षों का विवरण प्रस्तुत करना आवश्यक हो जाता है। ज्ञान मीमांसा के संदर्भ में भारतीय चिन्तकों के सभी मतों का विस्तार के साथ उल्लेख करना कठिन है इसलिए केवल उन्हीं पक्षों का संक्षिप्त परिचय यहाँ देने का प्रयास किया गया है जिसका ज्ञान मीमांसा की दृष्टि से विशेष महत्त्व है।
प्रो. रघुनाथ गिरि ने अपनी एम.ए., पी.एच.डी., एल. एल.वी. तथा आचार्य की उपाधि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त की। आपने महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ में दर्शन शास्त्र विभाग की स्थापना की। आप भारतीय दर्शन शास्त्र के जाने-माने विशिष्ट विद्वान, विचारक, लेखक और व्याख्याता रहे हैं। आपने देश और विदेश के अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों एवं सम्मेलनों मे अपने अनुसन्धान प्रपत्रों को प्रस्तुत किया है। लगभग सी से भी अधिक उनके अनुसन्धान प्रपत्र अनेक हिन्दी एवं अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए है। नीति शास्त्र, आचार- शास्त्र, तर्क शास्त्र एवं पुराणों से संबंधित अनेक उच्चस्तरीय पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। वे भारतीय तर्क - शास्त्र (नव्य- न्याय) के भारत के कुछ गिने-चुने विद्वानों में से एक थे। प्रो. गिरिं अनेक हिन्दी-अंग्रेजी तथा संस्कृत पत्र-पत्रिकाओं के संपादक तथा दार्शनिक त्रैमासिक के प्रमुख संपादक रहे हैं। उनका बौद्ध तर्क भाषा का हिन्दी का अनुवाद बौद्ध तर्क के अध्ययन में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। उनके निर्देशन में लगभग पचास से अधिक छात्रों ने पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की है। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में दर्शन शास्त्र विभाग मे जहाँ कहीं भी उनके छात्र प्रोफेसर एवं रीडर हैं उन्हें अत्यधिक सम्मान देते हैं।
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