| Specifications |
| Publisher: Rampur Raza Library, Uttar Pradesh | |
| Author Mahakavi Kalidas | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 137 (Throughout Color Illustrations) | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 316 gm | |
| Edition: 2014 | |
| ISBN: 9789382949169 | |
| HBH035 |
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रामपुर रज़ा लाइब्रेरी विश्व की महत्वपूर्ण लाइब्रेरियों में से एक है। यह विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के वर्णन के अतिरिक्त भारतीय इस्लामिक शिक्षा एवं कला का महत्त्वपूर्ण ख़ज़ाना है। इसकी स्थापना रामपुर के प्रथम नवाब फैजुल्लाह ख़ां द्वारा 1774 ई० में की गयी। इसके पश्चात रामपुर के अन्य शासकों ने भी इस लाइब्रेरी से सम्बन्धित संग्रह में रुचि ली, इसी कारण यह लाइब्रेरी उसी समय से बहुत प्रसिद्ध हो गयी। रामपुर के नवाब विद्वानों, कवियों, चित्रकारों, कैलीग्राफों तथा संगीतकारों के बहुत बड़े संरक्षक रहे हैं। इसी कारण उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किये। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात रामपुर की रिसायत भारतीय संघ में सम्मिलित कर दी गयी, इसके बाद 6 अगस्त 1951 से रज़ा लाइब्रेरी एक ट्रस्ट के अन्तर्गत आ गयी। इसके बाद पूर्व केन्द्रीय शिक्षामंत्री प्रो० सय्यद नूरूल हसन के प्रयासों से भारत सरकार ने 1 जुलाई 1975 ई० को रामपुर रज़ा लाइब्रेरी को पार्लियामेण्ट एक्ट 1975 के अधीन राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित किया। आज यह लाइब्रेरी संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन है। इसके . बोर्ड के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के महामहिम श्री राज्यपाल हैं।
इस लाइब्रेरी में लगभग 17000 पाण्डुलिपियां मौजूद है जो अरबी, फारसी, संस्कृत, तुर्की, पश्तो, उर्दू तथा हिन्दी आदि भाषाओं में हैं। इसके अतिरिक्त यहां पर विभिन्न भाषाओं के चित्रों और ताड़पत्रों का उत्तम संग्रह है। इस संग्रह में लगभग 60,000 मुद्रित पुस्तकें विभिन्न भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में उपलब्ध हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का कथन है कि "राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।" हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा के साथ-साथ जनमानस की भी भाषा है। किसी भी पाण्डुलिपि के तथ्यों, सम्प्रत्ययों तथा तत्त्वों को समझने के लिए उसकी भाषा का जानना आवश्यक है, तो सर्वसामान्य जनमानस तक इनके विषय को पहुँचाने का सर्वोत्तम साधन इसका अनुवाद किया जाना है। अनुवाद एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य है जिसके माध्यम से किसी भी साहित्यकार अथवा कविकल्पित विचारों को जनसाधारण की भाषा में परिवर्तित कर जनमानस तक बहुत सरलता से पहुँचाया जा सकता है।
एक स्थल पर मैंने पढ़ा कि एक वृद्ध पुरुष से किसी युवक ने पूछा कि आपने अपने सम्पूर्ण जीवन में क्या किया ? तो उसे वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया- "मेघे माघे गतं वयः" अर्थात् उसने अपनी सम्पूर्ण आयु कालिदास द्वारा रचित 'मेघदूतम्' तथा माघ द्वारा रचित 'शिशुपालवधम्' को पढ़ने में लगा दी तब स्मरण हो आया कि महाकवि कालिदास कृत मेघदूतम् की कई पाण्डुलिपियाँ रज़ा लाइब्रेरी के संग्रह में भी हैं।





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