पिता की सेना में पति को घिरे देख युद्धक्षेत्र में लज्जा त्याग संयोगिता बोली, 'स्वामी! अब मेरा मुँह न देखिए बढ़-बढ़कर हाथ दीजिए और क्षत्रिय-जन्म सुफल कीजिए!'
वीर क्षत्राणी संयोगिता, कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थीं। संयोगिता जब यौवन को प्राप्त हुई, उस समय सम्पूर्ण भारत में पृथ्वीराज की वीरता की चर्चाएँ हो रही थी। संयोगिता ने जब पृथ्वीराज की वीरता की कथा सुनी, तब वह पृथ्वीराज के प्रेम पाश में बंध गई। प्रेमशास्त्र में ऐसी कन्याओं को मुग्धा कहा गया है।
मुग्ध संयोगिता के हृदयस्थ प्रेम के विषय में जब जयचन्द को पता चला, तो वह किसी अन्य राजा के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने की तैयारी करने लगा, क्योंकि जयचन्द और पृथ्वीराज के मध्य शत्रुतापूर्ण संबंध थे।
संयोगिता के स्वयंवर समारोह के अवसर पर जयचन्द ने भारत के सभी राजाओं को निमन्त्रण दिया, परन्तु पृथ्वीराज को नहीं बुलाया। इस सबके बावजूद पृथ्वीराज भरे मंडप से संयोगिता का अपहरण करके ले गया, मगर इतनी भारी सुरक्षा के बीच कैसे हुआ यह सब !
क्षत्रिय कुल सिरमौर पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी की रूह फूंक देने वाली इस कहानी में आचार्य चतुरसेन ने श्रृंगार और वीर रसों का अद्भुत संगम कराते हुए इसे अमर ऐतिहासिक उपन्यास बना दिया है।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिन्दी भाषा के एक महान उपन्यासकार थे। इनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इनकी प्रमुख कृतियाँ गोली, सोमनाथ, वयं रक्षामः और वैशाली की नगरवधू इत्यादि हैं। आभा इनकी पहली रचना थी।
इनके अतिरिक्त शास्त्रीजी ने प्रौढ़ शिक्षा, स्वास्थ्य, धर्म, इतिहास, संस्कृति और नैतिक शिक्षा पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं।
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