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श्रीमद्भगवद्‌गीता- Shrimad Bhagwat Gita: Srishti Ka Geet (Scientific Discussion as Appropriate)

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Specifications
Publisher: AISECT PUBLICATIONS, BHOPAL
Author Upendranath Sharma
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Pages: 390
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 490 gm
Edition: 2023
ISBN: 9788119772452
HBY855
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Book Description

प्राक्कथन

गीता उपनिषदों का सारांश है। मानव के अभ्युदय एवं निःश्रेयस के हेतु एक समग्र जीवन-शैली के सभी सूत्र गीता में कथित किये गये हैं। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने एवं आततायियों से युद्ध करके उनका वध करने की प्रेरणा देने का जो कथोपकथन किया; उसे पश्चात महर्षि व्यास ने छन्दोबद्ध किया। प्रेरणा एवं ज्ञान के स्रोत के रूप में गीता के सभी श्लोक आपस में अन्तर्योजित हैं। इसका भावार्थ यह है कि गीता के प्रत्येक अध्याय से चयित कुछ श्लोकों से भी हम गीता का सार ग्रहण कर सकते हैं। इस संदर्भ में हॉलोग्राम का उल्लेख समीचीन होगा। हॉलोग्राम का मुख्य गुण यह है कि उसके सूक्ष्मतम अंश से हम सम्पूर्ण वस्तु का रूप सृजित कर सकते हैं। गीता एवं सनातन आर्ष साहित्य को हम हॉलोग्राम कह सकते हैं। उसके किसी अंश में पूर्णता की ओर ले जाने की सामर्थ्य है।

संसार भर के विद्वान गीता के सिद्धान्तों का अनुप्रयोग अपने एवं अपने समाज को प्रगत एवं समुन्नत बनाने में कर रहे हैं। हम हिन्दुओं को गीता के सूत्रों का अध्ययन, मनन कर, सम्यक् सोच एवं सम्यक् जीवन-शैली को आत्मसात करने के सर्वतोमुखी लाभों से वंचित रखा गया है। इसके कारणों का उल्लेख इस विमर्श में श्लोकों की व्याख्या में यथास्थान किया गया है।

प्रत्येक हिन्दू को यह ज्ञातकर गर्व होगा कि विज्ञान ने जिन नियमों को 100-200 वर्ष पूर्व खोजा है; गीता में उनका उल्लेख 5300 वर्ष पूर्व से ही है। यही नहीं विज्ञान जिन तथ्यों को अभी खोजने एवं समझने का प्रयास कर रहा है, किन्तु असफल है; उनका भी गीता में उल्लेख है। इसीलिये संसार के बुद्धिमानतम वैज्ञानिक गीता के सूत्रों का मनन करने में गहनतम रूप से रुचिशील रहते हैं। परन्तु अधिकांश हिन्दुओं ने अपने जीवन से गीता जैसे अमृत-मय रसायन को बहिष्कृत ही कर रखा है। इस गंभीर षड़यंत्र के कारणों का विमर्श में यथास्थान संकेत किया गया है।

पदार्थ का उद्भव एवं जीवन का विकास-एक अतिचेतनसर्जक का सृजन-

यह सिद्धान्त अब संदेहजनक होता जा रहा है, कि जीवन एवं बुद्धि का विकास एक संयोगात्मक घटना है। जीवन एवं जीवित प्राणियों की संरचना से वैज्ञानिक अब सृजन में अन्तर्भूत योजना/आकल्पन तथा योजनाकार/आकल्पनकार में विश्वास करने लगे हैं। गहन अनुसंधान इस सत्य की ओर संकेत करता हैं, कि एक लघु जीव भी यादृच्छिक रूप से उत्पन्न नहीं हो सकता। इसकी संभावना उतनी ही नगण्य है, जितनी एक कबाड़खाने में तूफान के कारण बोइंग के निर्मित हो जाने की।

ब्रह्माण्ड के सृजन में जीवन की आयोजना पूर्व से ही अन्तर्भूत थी। ब्रह्माण्ड के भौतिक नियमों के स्थिरांक इस प्रकार नियत किये गये थे, कि वे जीवन एवं अन्ततः मानव जैसे बुद्धिमान प्रणियों को जन्म दें, जो ब्रह्माण्ड के बारे में प्रश्न करने में सक्षम हों। यदि गुरुत्व का मान, जो है, उससे किञ्चित भी ऊपर-नीचे होता, तो तारे तीव्रगति से ईंधन समाप्त कर देते एवं जीवन को विकास का अवसर ही नहीं मिलता। यदि प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन के मानों में किञ्चित भी परिवर्तन होता, तो तारों का जन्म ही नहीं होता, क्योंकि हाइड्रोजन का निर्माण ही नहीं होता, जो तारों का ईंधन है। बिग-बैंग के समय सभी भौतिक नियमों के स्थिरांकों एवं कणों के मानों में किञ्चित भी परिवर्तन होता तो स्थिर आकाशगंगाओं, तारों, ग्रहों का विकास नहीं हो पाता, जो जीवन के विकास के लिये अपरिहार्य थे। ब्रह्माण्ड की मौलिक संरचना से बुद्धिमान जीवन का विकास एक अनिवार्यता थी। जीवन की विविधता की पृष्ठभूमि में किसी बुद्धिमान शक्ति का हाथ होने के सत्य को वैज्ञानिक अब स्वीकार कर रहे हैं। ज्ञानेद्रियों जैसे अंगों का विकास, पक्षियों के गीत, प्राणियों की विविधता एवं विविध प्रकार की क्षमताओं का विकास केवल प्राकृतिक चयन या संयोग का परिणाम नहीं हो सकता।

वैज्ञानिक अनुसंधानो द्वारा सनातन धर्म के विचारों की पुष्टि-

कार्लसांगा अपनी पुस्तक कॉस्मॉस में कहते हैं- "हिन्दू धर्म विश्व में एकमात्र धर्म है, जिसने यह विचार दिया कि ब्रह्माण्ड, असंख्य, वस्तुतः अनन्त जन्म एवं मृत्यु के चक्रों से गुजर रहा है। यह एकमात्र धर्म है, जिसका समय-मान आधुनिक खगोल वैज्ञानिक गणनाओं के समय-मानों से साम्य रखता है। सामान्य दिन तथा रात से लेकर ब्रह्मा के दिन-रात, जो कि 8.7 अरब वर्ष के बराबर होते हैं। जो सूर्य एवं पृथ्वी की आयु से अधिक एवं बिग-बैन्ग के समय से आधे से अधिक है। तथा और भी सुदीर्घ समय-मान हैं। बायबल में यह कुछ हजार वर्ष तथा माया सभ्यता में कुछ दस लाख वर्ष है। जब कि इस समय मान को भारतीय सत्य के निकट, अरबों वर्षों में खोज चुके थे।

नटराज की मूर्ति में हम चार भुजाएं पाते हैं। एक हाथ में डमरू है, जो सृष्टि के जन्म के समय ध्वनि का प्रतीक है। बांये हाथ में ज्वाला है, जो ब्रह्माण्ड के नवीन सृजन का तथा अरबों वर्ष बाद उसके विनाश का प्रतीक है। ये प्रतीक आधुनिक खगोल विज्ञान के प्रारम्भिक सत्य विचारों को दर्शाते हैं।

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