| Specifications |
| Publisher: Bhagavad Gita Anusandhan Evam Prachar Prasar Trust, Mathura | |
| Author Ashok Vishwamitra Acharya | |
| Language: Sanskrit Text with Hindi Translation | |
| Pages: 172 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 222 gm | |
| ISBN: 9789392149603 | |
| HBD834 |
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नाम: डॉ. अशोक विश्वामित्र 'आचार्य'
जन्म: आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी युधिष्ठिर संवत् 5108, विक्रम संवत् 2027 बुधवार, 15 जुलाई, दयालबाग, आगरा।
विरक्तदीक्षा: बसंत पंचमी युधिष्ठिर संवत् 5153, विक्रम संवत् 2071, निम्बार्क सम्प्रदाय ।
गुरुदेव: जगद्गुरु निम्बार्काचार्य श्रीराधा सर्वेश्वर शरण देवाचार्य 'श्रीजी महाराज'।
माता: श्रीमती भगवान देवी।
पिता: डॉ. शिवराम जी। (सेवानिवृत पशु चिकित्सक)
शिक्षा: स्नातकोत्तर, भारतीय वाङ्मय पुराणेतिहास पर शोध, आयुर्वेदाचार्य, हिन्दी और संस्कृत में लेखन, साहित्यकार, कवि, धर्मशास्त्र प्रवक्ता, इतिहासविद् द्वैताद्वैतदर्शनाचार्य।
रचनायें: श्रीहरिशरणागति स्तोत्र, नील कमल (उपन्यास), दशग्रीव (खण्डकाव्य), तपती यशः चन्द्रिका (काव्य संस्कृत), वाल्मीकि के राम, मारुति चरित विलास (काव्य, हनुमत चरित्र), अवन्ति के विक्रम (ऐतिहासिक उपन्यास), मातृभूमि की वेदी पर (काव्य), मुद्गलानी (उपन्यास), रावण का आत्मगीत (काव्य), भागवत-नवनीत (काव्य), श्रीराघव प्रपत्ति स्तोत्रम् (स्तुति काव्य संस्कृत), राम कथा रसधार, तापी चालीसा, महाभारत के महानायक योगश्वर श्रीकृष्ण-कालखण्ड एवं दर्शन (शोध ग्रंथ), भागवत नवनीतम् (काव्य), कौमुदी सौरभ (उपन्यास), जटायु धर्म, रामायण के साधक की साधना यात्रा, सरस राम गीता (भक्तियोग), सरस लक्ष्मण गीता (कर्म और भक्ति सिद्धान्त), "मृणालिका-विक्रम" (ऐतिहासिक उपन्यास), मानस का सरस (श्रीरामनामामृतम्), रावण का आत्मगीत: शैव हूँ, मैं वैश्रवण हूँ (खण्डकाव्य) आदि।
कार्य: पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक, वर्तमान में भारतीय संस्कृति संरक्षण हेतु प्रयत्न व आध्यात्मिक तत्व चिन्तन सहित धर्मशास्त्रों की पारदर्शी व्याख्या सहित सद्धर्म व सामाजिक नैतिक मूल्यों, आदर्श, वर्णभेद, जाति भेद से रहित सत्यग्राही समाज की चेतना जाग्रति हेतु प्रयत्न तथा भारतीय वाङ्मय अनुसंधान, पाखण्डमुक्त सद्धर्म का निरन्तर प्रचार।
आचार्यवर डॉ. अशोक विश्वामित्र द्वारा लिखित 'श्रीमद्भागवतम् : स्वरूप एवं छन्द दिग्दर्शिका' एक अतुलनीय ग्रन्थ के रूप में प्रस्तुत हो रहा है। इसकी सामग्री अत्यन्त शोधपूर्ण है और बहुत परिश्रम से सम्पादित की गयी है। यह कार्य वही कर सकता है जिसे श्रीमद्भागवत का ज्ञान हो, संस्कृत भाषा और संस्कृति का ज्ञान हो, साहित्य सृजन का ज्ञान हो और छन्द व अलंकार जैसी विधाओं का भी ज्ञान हो। फिर ऐसे दुरूह विषय को सरल सहज भाषा में प्रस्तुत कर जनमानस के अनुशीलन योग्य और पठनीय बनाना वास्तव में एक प्रणम्य कार्य है।
ग्रन्थ में कुल आठ अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में छन्द का परिचय और साहित्य में उसकी उपयोगिता दर्शायी गयी है। श्रीगीता आदि शास्त्रों के उद्धरण द्वारा उन्हें प्रमाणित भी किया गया है। छन्द शब्द की व्युत्पत्ति, छन्द के प्रकार बताते हुए श्रीगीता, श्रीभागवत एवं वाल्मीकि रामायण में इनकी उपस्थिति दर्शायी गयी है।
कौन सा छन्द श्रीमद्भागवत में कहाँ-कहाँ और कितनी बार आया है- यह द्वितीय अध्याय का वर्ण्य विषय है। कुल छन्दों की संख्या, श्रीमद्भागवत की श्लोक संख्या में भिन्नता और उसमें तादाम्यता स्थापित करते हुए गणना के नियम भी बताये गये।
तृतीय अध्याय श्रीमद्भागवत का स्वरूप दिग्दर्शन कराता है। ज्ञान- विज्ञान से लेकर विभिन्न सभ्यताएँ, राजधर्म, सामाजिक-व्यवस्था, पारिवारिक- जीवन-मूल्य, वर्ण-व्यवस्था और प्रजातान्त्रिक शासन तक का वर्णन श्रीमद्भागवत प्रस्तुत करती है- यह दर्शाया गया। श्रीमद्भागवत को ब्रह्मसूत्र का भाष्य और वेद-उपनिषदों का सार सिद्ध किया गया। श्रीमद्भागवत की परम्परा दर्शाते हुए सर्ग-विसर्ग-स्थान आदि दस लक्षणों का परिचय भी लेखक ने दिया है।
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