Article of the Month - Oct 2022

This article by Natwer Kabra

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पुराण गाथा

महिमा

पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ -‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ होता है । ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत । ‘अण’ शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना अर्थात् जो पुरातन अथवा अतीत के तथ्यों, सिद्धांतों, शिक्षाओं, नीतियों, नियमों और घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करे। सूर्य की किरणों की तरह पुराण को ज्ञान का स्रोत माना जाता है। जैसे सूर्य अपनी किरणों से अंधकार को हटाकर उजाला कर देता है, उसी प्रकार पुराण अपनी ज्ञानरूपी किरणों से मानव के मन का अंधकार दूर करके सत्य के प्रकाश का ज्ञान देते हैं। सनातनकाल से ही जगत् पुराणों की शिक्षाओं और नीतियों पर ही आधारित है।
प्राचीनकाल से ही पुराण देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों - सभी का मार्गदर्शन करते आ रहे हैं। पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। पुराण मनुष्य को दुष्कर्म करने से रोकते हैं। वेदव्यासजी ने पुराणों की जो कि  वास्तव में अनादि हैं , पुनर्रचना की । जिसका अर्थ है जो वेदों का पूरक हो, अर्थात् पुराण। प्रेम, भक्ति, त्याग, सेवा, सहनशीलता ऐसे मानवीय गुण हैं, जिनके बिना समाज की उन्नति हो ही नहीं सकती।

१८(18) पुराणों के नाम और उनका महत्त्व :

पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में अठारहो पुराणों के नाम और उनकी श्लोक संख्या है। नाम और श्लोक संख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं अन्तर है। जैसे कूर्मपुराण में अग्नि के स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण; देवीभागवत में शिवपुराण के स्थान में नारद पुराण और मत्स्य में वायुपुराण है।
प्रश्न : महापुराण कितने हैं और कौन कौन से हैं ?
उत्तर : पुराण अठारह हैं। आइये इन १८ पुराणों के बारे में संक्षिप्त में जानकारी लेते हैं :

विष्णु पुराण के अनुसार-

1. ब्रह्मपुराणः—

  •  ब्रह्म पुराण सबसे प्राचीन है। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने किया था।
  •  इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है।
  •  इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है।
  •  इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं।


The Brahma Purana: Complete English Translation (Set of 2 Volumes)

2. पद्मपुराण:-

  •  पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं।
  •  इस ग्रंथ में पृथ्वी, आकाश, सभी पर्वतों, नदियों तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है।
  •  इस ग्रंथ में चार प्रकार के जीवों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज कहते हैं।


पद्मपुराणम् - Padma Purana (Set of 2 Volumes)

3. विष्णुपुराण:-

  •  विष्णु पुराण में 23000 श्र्लोक हैं।
  •  इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं।
  •  इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था।


Vishnu Purana

4. शिवपुराण( वायुपुराण):-

  •  शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है।
  •  इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है।
  •  इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं।
  •  इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व
  •  सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है।


The Siva Purana (Three Volumes)

5. भागवतपुराण:-

  •  भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं।
  •  इस पुराण का सप्ताह-वाचन -पारायण भी होता है।
  •  इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है।
  •  महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं।
  •  इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया

Bhagavata Purana (Set of 2 Volumes)

6. नारदपुराण:-

  •  नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं।
  •  इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है।
  •  प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है।
  •  दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है।
  •  इसमें मोक्ष, धर्म, नक्षत्र, व्याकरण, ज्योतिष, गृहविचार, मन्त्रसिद्धि, वर्णाश्रम, श्राद्ध , प्रायश्चित आदि का वर्णन है।


नारद पुराण (सरल हिन्दी भाषा में): The Narada Purana

7. मार्कण्डेयपुराण:-

  •  इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि वैदिक देवताओं का वर्णन किया गया है।
  •  इसके प्रवक्ता मार्कण्डय ऋषि और श्रोता क्रौष्टुकि शिष्य हैं।
  •  इसमें १३८ अध्याय और ७,००० श्लोक हैं।
  •  श्राद्ध, दिनचर्या, नित्यकर्म, व्रत, उत्सव,  सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषि मार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है।

The Markandeya Purana

8. अग्निपुराणः-

  •  इसके प्रवक्ता अग्नि और श्रोता वसिष्ठ हैं। इसी कारण इसे अग्निपुराण कहा जाता है।
  •   इसे भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोश(encychlopedia) माना जाता है। इसमें इस समय ३८३ अध्याय, ११,५०० श्लोक हैं।
  •  इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राणप्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित,  विवाह, मृत्यु, शकुनविद्या, वास्तुविद्या, दिनचर्या, नीतिशास्त्र, युद्धविद्या, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोशनिर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है।
  •  रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं।


अग्निपुराण (केवल हिन्दी अनुवाद) - The Agni Purana

9. भविष्यपुराणः—

  •  इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है।
  •  भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है।
  •  इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है।
  •  इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है।


श्रीभविष्यमहापुराणम्: Bhavishya Purana (Set of 3 Volumes)

10. ब्रह्मवैवर्तपुराणः—

  •  ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं।
  •  इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं।
  •  इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण: The Brahmavaivarta Purana

11. लिंगपुराण:–

  •  लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं।
  •  सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है।
  •  इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।


श्री लिंग पुराण: Linga Purana Retold in Simple Hindi Language

12. वराहपुराण:–

  •  वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं।
  •  इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
  •  इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है।
  •  श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है।


श्रीवराहपुराणम् (संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद)- Shri Varaha Purana

13. स्कन्दपुराण:–

  •  यह पुराण शिवजी के पुत्र कार्तिकेय के ऊपर लिखा गया है। उन्हें ही स्कन्ध भी कहा जाता है।
  •  स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं।
  •  स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं।


स्कन्द महापुराणम् (संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद): Skanda Purana - Kashi Khanda (Vol-IV)

14. वामनपुराण:-

  •  इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।
  •  इस ग्रंथ में वामन अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है।


वामन-पुराणम: Vamana Purana

15. मतस्यपुराण:–

  •  मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं।
  •  इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है।
  •  सृष्टि की उत्पत्ति, हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है।
  •   कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है।


The Matsya Purana (Set of 2 Volumes)

16.  गरुड़पुराण:–

  •  गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं।
  •  इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।
  •  इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है।
  •  साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है।
  •  वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।
  •  यह वैष्णवपुराण है। इसके प्रवक्ता विष्णु और श्रोता गरुड हैं, गरुड ने कश्यप को सुनाया था। इसमें विष्णुपूजा का वर्णन है। 


Sri Garuda Purana

17. ब्रह्माण्डपुराण:-

  •    ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक हैं।
  •    मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है।
  •    इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित, ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है।
  •    कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है।
  •    इसमें वैदिक काल से हुई राजाओं, भगवान्, और ऋषिओं की घटनाओ की रोचक और मन को मोह लेने वाली घटनाओं का वर्णन मिलता है।



The Brahmanda Purana (Set of 6 Books in English and Sanskrit)

इन पुराणों में न केवल ईश्वर, राजाओं, और ऋषियों का बल्कि इस संसार की रचना से लेकर इसके विनाश का भी पूरा व्याख्यान मिलता है। पुराणों में इस संसार के भौगोलिक स्थिति और राशि विज्ञान व हमारे सामन्य विज्ञान से जुडी भी चीज़ों का भी ज्ञान मिलता है। पुरे ब्रह्माण्ड की संरचना किस प्रकार हुई और किसने की ये सब कुछ पुराणों मैं मिलता हैं।
प्रश्न: पुराणों की संख्या १८ ही क्यों है ?
उत्तर : हिन्दू धर्म में १८ की संख्या को बहुत ही शुभ और पवित्र माना गया है।
* अणिमा , महिमा , लघिमा, इत्यादि सिद्धियां १८ ही मानी जाती है।
* सांख्य दर्शन में १८ ही तत्त्व वर्णित है -- पांच महाभूत, पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ और तीन - मन,प्रकृति और अहंकार ।
* छह वेदांग, चार वेद, आदि १८ प्रकार की विद्याएं मानी जाती है ।
* काल के १८ भेद बताएं गए हैं ।
* श्रीमदभगवद गीता में १८ अध्याय हैं ।
* माँ दुर्गा के १८ विशिष्ट स्वरुप माने गए हैं ।

पुराण सम्बन्धी कुछ अन्य प्रश्न और उनके उत्तर :

प्रश्न : पुराण अनादि है या श्री वेदव्यास जी द्वारा रचित है ?
उत्तर : पुराण मूलतः तो वेद की भांति भगवन का निःश्वास रूप ही है। भगवन व्यासदेव ने प्राचीनतम पुराण का प्रकाश और प्रचार किया। वस्तुतः पुराण अनादि और नित्य हैं।
प्रश्न : उप-पुराण कौन कौन से हैं ?
उत्तर : सनतकुमार , नरसिंह , बृहन्नारदीय , शिवरहस्य , दुर्वासा, कपिला, वामन, भार्गव, वरुण , कलिका , साम्बा, नंदी, सूर्य, परासर , वशिष्ट, देवी भागवत, गणेश और हंस पुराण।
प्रश्न : पुराणों में वर्णित कई प्रसंग असंभव  से लगते हैं. क्या सब बातें यथार्थ हैं ?
उत्तर: जब तक वायुयान का निर्माण नहीं हुआ था तबतक पुराणों में वर्णित विमानों के वर्णन को असंभव मानते थे पर अब वैसी बात नहीं रही. पूरनवर्नित सभी बातें ऐसी ही है , जो हमारे सामने न होने के कारन असंभव-सी दीखती है.
प्रश्न : क्या देवताओं से प्रत्यक्ष मिलने वाली बातें भी सत्य हैं ?
उत्तर : प्राचीनकाल के योगी, तपस्वी , ऋषि-मुनियों में ऐसी शक्ति थी कि  उनमे से कई समस्त लोकों में निर्बाध यातायात करते थे। देवताओं से मिलते थे। अपने तपोमय आकर्षण से भगवन को भी प्रकट कर लेते थे। 

महत्‍व

प्रश्न : इतने पुराणों का महत्व क्या है  ?
उत्तर: पुराण हमें दिया गया एक अनमोल उपहार है, अमूल्य रत्नों के अगाध समुद्र हैं।  इनमे जो श्रद्धा के साथ जितना गहरा गोटा लगाएंगे , वे उतना ही विशाल रत्नराशि प्राप्त कर धन्य होंगे।
सनातन धर्म में पुराणों का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। हर पुराण को अलग कारणों से लिखा गया है। यदि किसी को किसी पूजा में होने वाली विधि विधान का कारण जानना है तो उसे पुराणों का ही अध्ययन करना चाहिए। यह हमें ईश्‍वर के स्‍वरूपों और उनकी लीलाओं के द्वारा उनकी महिमा और जीवन के सिद्धांतों का ज्ञान देते हैं। पुराणों को मनुष्य के भूत, भविष्य, वर्तमान का दर्पण भी कहा जा सकता है । इस दर्पण में अपने अतीत को देखकर वह अपना वर्तमान संवार सकता है और भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है । अतीत में जो हुआ, वर्तमान में जो हो रहा है और भविष्य में जो होगा, यही कहते हैं पुराण। पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र में रखकर पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म और कर्म-अकर्म की गाथाएं कही गयी हैं। पुराणों में देवी- देवताओं के विभिन्न रूपों का तथा उनकी दुष्प्रवृत्तियों का भी विस्तृत उल्लेख किया है। लेकिन मूल उद्येश्य सद्भावना का विकास और सत्य की प्रतिष्ठा ही है। यह जरूर है कि पुराणों को वेदों और उपनिषदों जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है।

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