| Specifications |
| Publisher: Central Institute Of Hindi, Agra | |
| Author Nand Kishore Pandey | |
| Language: Braj, Hindi and English | |
| Pages: 533 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 10x6.5 inch | |
| Weight 941 gm | |
| Edition: 2021 | |
| ISBN: 9789388039475 | |
| HBI900 |
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केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार की एक स्वायत्तशासी शिक्षण संस्था है। यह संस्थान भाषाविज्ञान, व्याकरण, शिक्षाशास्त्र एवं साहित्य के लिए उच्च शोध संस्थान के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है। संस्थान हिंदी के उत्थान तथा विकास के संदर्भ में विभिन्न प्रकार की शैक्षणिक गतिविधियों का संचालन कर रहा है।
भाषा मानव संप्रेषण का सबसे विशिष्ट और सशक्त उपकरण है। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर होने के साथ-साथ अपने समाज का दर्पण भी होती है। विगत कुछ समय से यह अनुभव किया जा रहा था कि हिंदी प्रदेशों से लेकर अखिल भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक आधुनिक परिनिष्ठित हिंदी के प्रचलन के कारण हिंदी परिवार की लोकभाषाएँ विकास पथ पर समान गति से अग्रसर नहीं हो पा रही हैं। उनका सामान्य व्यवहार और प्रचार-प्रसार सीमित हो रहा है। स्वयं इन लोकभाषाओं को बोलने वाले लोग भी विभिन्न कारणों से इनके प्रयोग में संकोच अनुभव करने लगे हैं। परिणामतः इनमें निहित विशिष्ट शब्दावली और लोक-साहित्य एवं संस्कृतिपरक अभिव्यक्तियों के अपरिचय एवं विलोपन का खतरा मंडरा रहा है। लोक-जीवन से जुड़े विविध कार्य-क्षेत्रों की शब्दावली और अभिव्यक्तियाँ नष्ट होने का अर्थ होता है उन क्षेत्रों में निहित हमारी कार्यदक्षता और विशेषज्ञता का हास। इस दृष्टि से लोक भाषाओं का संरक्षण और प्रलेखन अत्यंत आवश्यक है।
संस्थान के अनुसंधान एवं भाषा विकास विभाग द्वारा संचालित हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना का उद्देश्य है - हिंदी की लोकभाषाओं की विशिष्ट शब्द संपदा का संरक्षण और इनके भावी विकास के लिए आधुनिक सूचना-तकनीकी माध्यमों से डिजिटलीकृत प्रलेखन। इस विशद स्तर पर हिंदी की लोकभाषाओं के संरक्षण-प्रलेखन का प्रयास देश में पहली बार हो रहा है। ये लोकभाषाएँ (वेराइटीज़) भारत की जनगणना, वर्ष 1991 की रिपोर्ट : 'भाषाएँ : भारत और राज्य 1997' (Language: India and States, 1997) में परिगणित हैं। इनको बोलने वालों ने इन्हें अपनी मातृभाषा के रूप में दर्ज कराया है। तदनंतर भारत की जनगणना वर्ष 2001 एवं 2011 (Statement-1: Abstract of speakers strength of languages and Mother Tongues -2011) में हिंदी की मातृभाषाओं की यह सूची संवर्धित हुई है।' संस्थान द्वारा स्वीकृत संशोधित कार्य-योजनानुसार हिंदी की 18 प्रमुख मातृभाषाओं (उपभाषाओं और बोलियों) के लोक शब्दकोशों का निर्माण किया जाएगा। हिंदी लोक शब्दकोश श्रृंखला का पहला कोश (भोजपुरी-हिंदी-इंग्लिश लोक शब्दकोश) वर्ष 2009 में प्रकाशित हुआ था। इसके उपरांत ब्रजभाषा, राजस्थानी, बुंदेली, अवधी, हरियाणवी, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली कोशों के लिए प्रविष्टि एवं अन्य सामग्री संकलन का कार्य किया गया जो अब क्रमशः संपादन एवं प्रकाशन की प्रक्रिया में आगे जाएँगे। इस क्रम में ब्रजभाषा और राजस्थानी के लोक शब्दकोश पुस्तकाकार रूप में अध्येताओं के हाथों में आने जा रहे हैं।
हिंदी लोक शब्दकोशों की रचना हिंदी भाषा और बोलियों के अध्ययन-अनुसंधान में रुचि रखने वाले देश-विदेश के अध्येताओं की अपेक्षाओं और भाषा-संरक्षण एवं कोश-निर्माण के अनुधानतन मानकों को ध्यान में रख कर की गई है। आज हिंदी ही नहीं बल्कि अन्य भाषा-भाषी अध्येताओं की रुचि भी इन लोकभाषाओं और संबद्ध संस्कृतियों के प्रति बढ़ रही है। एक बड़ा कारण है - उच्चतर अध्ययन-अनुसंधान की दृष्टि से हिंदी-क्षेत्र का अपने-आप में विशाल संभावनाएँ समेटे होना। दूसरा कारण है - हिंदी का अखिल भारतीय एवं वैश्विक विस्तार। समस्त विश्व में हिंदी भाषा-भाषी समूहों के विस्थापन के ऐतिहासिक क्रम में इस बात की भी पर्याप्त संभावना है कि कभी किन्हीं कारणों से मूल भाषा-क्षेत्र छोड़कर गए लोगों को फिर से अपने गृह परिवेश में आने का अवसर न मिला हो। तथापि अपनी धरती और मातृभाषा के प्रति जुड़ाव किसी-न-किसी रूप में अब भी उनके स्मृति पटल पर अंकित है। देश या विदेश में रहने वाले ऐसे अनेक लोग होंगे जो अपनी भाषाई जड़ों को फिर से तलाशना चाहते होंगे। उनके लिए यह कोश विशेष रूप से सहायक हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है कि हमारे नए भाषाई स्रोत, विशेष रूप से कोशीय संसाधन इनमें रुचि रखने वाले, अध्ययन एवं अनुसंधानशील वैश्विक समुदाय के लिए ये सहजतापूर्वक सर्वसुलभ हों।
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