महाकवि के रूप में सुविख्यात स्व. जयशंकर प्रसाद हिंदी नाट्य-जगत और कथा-साहित्य में भी एक विशिष्ट स्थान रखते है | तितली, कंकाल और इरावती जैसे उपन्यास और आकाशदीप, मधुआ और पुरस्कार जैसी कहानियाँ उनके गद्य-लेखन की अपूर्व उचाइयाँ है |
इस संग्रह में प्रसादजी की चुनी हुई कहानियाँ संकलित है | इनसे गुजरते हुए न सिर्फ भारतीय जीवन की मूल मानवतावादी दृष्टि की अनुगूँजे सुनाई पड़ती है, बल्कि सामाजिक यथार्थ के अनेक अप्रिय स्तरों का भी उद्घाटन होता है | वास्तव में प्रसादजी के लिए साहित्य-सृजन एक सांस्कृतिक कर्म है और अपनी परम्परा के प्राचीन अथवा सनातन मूल्यों में गहन आस्था के बावजूद वे मनुष्य की व्यक्तिगत मुक्ति के आकांक्षी नहीं है | यही कारण है की इन कहानियो में ऐसे चरित्रों की बहुलता है, जो सामाजिक स्वाधीनता और मानव-गरिमा को सर्वोपरि मानते है | इतिहास और संस्कृति के ऐसे मनोरम कथा-चित्र इन कहानियो में उकेरे गए है, जो हमें न केवल मुग्ध कर लेते है, बल्कि स्वयं को पहचानने और सार्थक ढंग से सोचने की प्रेरणा भी देते है |
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