जैसे-जैसे बीसवीं सदी का अन्त नज़दीक आता जा रहा है, इक्कीसवीं सदी के स्वागत की विश्व भर में तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। बीसवीं सदी को मानसिक तनाव की सदी भी माना गया है, पर इक्कीसवीं सदी में भी तनाव कम होने के कोई भी आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में तनाव और भी बढ़ेगा, इसलिए हर व्यक्ति को तनाव का सामना करने व कम करने की विधि को जीवन में अपनाना होगा।
तनाव से मुक्ति पाने के लिए इस बात को स्वीकार करना होगा कि तनाव परिस्थितियों के कारण निर्मित नहीं होता, बल्कि इसका कारण व्यक्ति की ग़लत विचारधारा एवं ग़लत दृष्टिकोण है। इस सनातन सत्य को कुछ उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करना उचित होगा।
* आपके घर मेहमान आये हैं। आपकी पत्नी उनके लिए चाय-नाश्ता बना कर लाती है। कोई भी कारण से चाय गिर जाती है। ऐसी परिस्थिति में आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? प्रमाणिकता से सोचिए कि चार व्यक्तियों की अलग-अलग प्रतिक्रियायें हो सकती हैं। एक - तुम हमेशा ऐसी ही ग़लतियाँ करती रहती हो। मैंने तुमसे शादी करके बहुत बड़ी समस्या मोल ले ली है। दूसरा - जो हुआ सो गया आगे चल कर ध्यान रखना। तीसरा - जो चाय बची है उसे पीने का हम आनन्द लेते हैं, बाद में फ़र्श साफ़ कर लेंगे। चौथा - तुम फ़र्श साफ़ कर लो, मैं दुबारा चाय बना कर लाता हूँ। इन चार भिन्न प्रतिक्रियाओं का आधार व्यक्ति का अपनी पत्नी के प्रति दृष्टिकोण है।
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