About the Author
Prof. (Dr.) Gopesh Mangal MD, PhD (Panchkarma), PGDHHм He is Professor and Head of PG Department of
Panchkarma, National Institute of Ayurveda Deemed University, Jaipur (Raj) Bharat. Having 18 years of academic, clinical and research experience. Author of 13 books published fromn Bharat, Nepal, Malaysia, and Germany and one book chapter from Florida and more International research publications Guided/Co- guided more than 37 PG and 10 PhD scholars. Recipient of "Bhamashah", "Jeevaka", "Ayurmeda" and Ayur Ratna Awards from Bharat and Malaysia. He was deputed by Ministry of AYUSH, Government of India to T&CM division, Government of Malaysia as Ayurveda expert to propagate Ayurveda and Panchakarnma in Malaysia for 3 years.
Dr. Achala Ram Kumawat B.A.M.S., MD (Panchkarma)
Dr. Kumawat, an expert in Ayurveda with an MD in Panchkarma from the National Institute of Ayurveda, Jaipur, brings 4 years of experience to the field. Specializing in Panchkarma treatments and therapies, he is committed to advancing holistic healing through Ayurveda. With a strong focus on patient care and research, he has significantly contributed to the development of Ayurvedic practices through his clinical expertise and academic proficiency. Currently, he serves as an Assistant Professor at the Post Graduate Institute of Ayurveda (PGIA), Jodhpur, affiliated with Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Rajasthan Ayurved University.
प्राक्कथन
आयुर्वेद अर्वाचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, जो न केवल शारीरिक रोगों का उपचार करती है, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक स्वास्थ्य को भी सुदढ़ करती है। इसका उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन बनाए रखना है।
आयुर्वेद के आठ अंगों में से एक प्रमुख अंग वाजीकरण चिकित्सा है, जो व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और यौन स्वास्थ्य को सुदढ़ बनाने में सहायक है। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्थ जीवन और उत्तम शक्ति प्राप्त करने के लिए आयुर्वेद की व्यापक भूमिका रही है। मानव जीवन में स्वास्थ्य, शक्ति और दीर्घायु का विशेष महत्व है। इसीलिए आयुर्वेद न केवल रोगों के उपचार की विज्ञान हैं बल्कि यह स्वस्थ जीवन शैली की सम्पूर्ण पद्धति भी हैं।
विशेष रूप से आधुनिक जीवनशैली में तनाव, अनुचित आहार और व्यस्त दिनचर्या के कारण शरीर की ऊर्जा और जीवन शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आधुनिक जीवनचर्या, उचित एवं संतुलित आहार की कमी, शारीरिक गतिविधियों की कमी और मानसिक तनाव बढ़ रहा है, जिससे शरीर में कई तरह के असंतुलन उत्पन्न हो रहे हैं। इसका सीधा असर शरीर की ऊर्जा, मन व शरीर पर पड़ता है। यह स्थिति बंध्यत्व, क्लैव्य, हार्मोनल असंतुलन, मानसिक तनाव और शारीरिक दुर्बलता जैसी समस्याओं का कारण बनती है।
इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए आयुर्वेद में पंचकर्म और वाजीकरण चिकित्सा का विशेष महत्व है। पंचकर्म और वाजीकरण चिकित्सा आधुनिक जीवनशैली के कारण उत्पन्न इन सभी व्याधियों को दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावी उपाय हैं।
अनेक प्रकार की व्याधियों को निर्मूल उन्मूलन के लिए आयुर्वेद में "पंचकर्म" चिकित्सा का एक विशेष महत्व है।
विभित प्रकार की चिकित्स विधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे सेहन स्वेदन चमन, विरेचन नि बस्ति, अनुवासन अस्ति, उत्तर बस्ति नस्य और स्मोक्षण आदि। इन विधियों के माध्यम से शरीर के प्रकृति दोष बाहर निकलते हैं जिससे रोगी का शरीर आरोग्य को प्राप्त होता है और प्रजनन क्षमता में वृद्धि होती है।
वाजीकरण चिकित्सा का महत्व चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अन्य आयुर्वेदिक शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है तथा यह पुस्तक शास्त्रों में वर्णित वाजीकरण चिकित्सा के साथ आधुनिक विज्ञान और अनुसंधान से भी प्रेरित है।
इस पुस्तक के लेखन में हमारे गुरूजन प्रो. संजीव शर्मा (कुलपति राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर मानद विश्वविद्यालय), प्रो. (वैद्य) प्रदीप कुमार प्रजापति (कुलपति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर), प्रोफेसर बी.एल. गौड़ (भूतपूर्व कुलपति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर), प्रो. अभिमन्यु कुमार (भूतपूर्व कुलपति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर), प्रो. बलदेव धीमान (भूतपूर्व कुलपति, श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र), प्रो. अनूप ठाकर (पूर्व निदेशक, आइ.टी.आर.ए. जामनगर), प्रो. अजय कुमार शर्मा (भूतपूर्व निदेशक, राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर), प्रो. एम.एस. मीणा, प्रो. एस. के. खाण्डल, प्रो.ओ.पी. शर्मा, प्रो. श्रीनिवास शर्मा, प्रो.यू.एस. निगम, प्रो. ओ.पी. दाधीच, प्रोफेसर कमलेश शर्मा, प्रो. शंकरराव, प्रो. मीता कोटेचा, प्रो. पवन गोदतवार, प्रो. आर. के. जोशी, प्रो.पी. हेमन्था, प्रो. महेश दीक्षित, प्रो. महेश कुमार शर्मा, डॉ. ज्ञान प्रकाश शर्मा एवं समस्त गुरूजन, का हृदय से आभार प्रकट करते है, जिनके आशीर्वाद से यह कार्य संभव हो सका तथा विद्वान मित्रगण एवं शिष्यों का भी हृदय से आभार प्रकट करते है, जिनकी शुभकामनाएं एवं सहयोग से कारण इस पुस्तक को मूर्त रूप प्राप्त हो सका।
इस पुस्तक के लेखन एवं संकलन कार्य में विशेष सहयोग डॉ. करिशमा सिंह, डॉ. जतिन्द्र वर्मा, डॉ. प्रवेश श्रीवास्तव, डॉ. निधि गुप्ता, डॉ. अशोक यादव, डॉ. अवधेश गौतम, डॉ. पराग देवडिया, डॉ. प्रेम वर्मा, एवं डॉ. निकिता पवार का विशेष रूप से सहयोग रहा अतः आप सभी साधुवाद के पात्र है।
इस पुस्तक हेतु जिन ग्रंथो को हमने पुस्तक के सम्पादन एवं संकलन में उपयोग किया है, उन सभी विद्वानों एवं गुरुजनों का हम विशेष रूप से हृदय से आभार व्यक्त करते है।
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